एकांकी- कोल रा मोल

पात्र -
हरस - घांघू रो राजकंवर
जीण- हरस री भैण
बाबोसा- हरस-जीण रा बाबोसा-घांघू रा ओधपति। चौहान घंघरान।
माजी- हरस-जीण री मां
भौजान- हरस री जोड़ायत
कुरड़ो- हरस रो साथी
तीजां- कुरड़ै री मां
( कुरड़ै अर हरस रा साथी बेली, पणियार्यां आद-आद )
समै- विक्रम संबत ११ वीं रो आरंभ।
पैलो दरसाव
(जगां- गांव रो गुवाड़, समै-सिंझ्या रो)
(गांव रै गुवाड़ मांय पांच सात टाबर 'ल्हुक-मींचणी' रो ख्याल रमै है। ख्याल-ख्याल में डाईं उतारणै री बात ले'र आपोपरी में कीं राफड़-झगड़ो हुय जावै है।)
कुरडो - (रिसाणो हो'र) हरस! म्हारो डांव उतारै बिनां तूं घरै नहीं जा सकै। हूं थानैं पैलां बै'कार'र कै देवूं हूं। हां, सोच लेई थारो चन्दरमां।
हरस - अब तो भाईड़ा! सिंझ्या हुवणै सूं गैरो अंध्यारो हुग्यो है। कालै आवतां ईज पैलीपोत थारो डाव उतार'र फेरूं दूजो डाव रम्मांला। म्हारा भीड़ी भी अबै घरे जावण री खाथावळ करै है।
कुरड़ो - देख हरसा! आ बात सावळ कोनीं। तूं थारै भीड़ियां नैं ठाम ले। म्हैं भी म्हारला नैं ठामू हूं।
हरस - डाव री आज ही इसी काईं अड़ी है? अब घणो अंध्यारो हुयगो। हूं तो जावूं हूं। मां अर बाबोसा उडीकता हुवैला। आव बाई जीण! घरे चालां। अर थे भी सगळा आप आप रै घरै जावो। कान्दा रोटी खावो। ख्याल खतम। पइसा हजम। (चाल पड़ै।)
कुरड़ो -(उण नैं अडवार दे'र) हूं थानैं कै दियो कै म्हारो डाव चुकायै बिनां हूं थानैं अठै सूं अेक पांवडो भी नहीं हालण द्यूंला। चाहे मां उडीको अर चाहे बाबोसा।
(हरस उणनैं धक्को दे'र जावणो चावै है। कुरड़ो उणरै गंफी घाल'र धरतियां पटकै है।)जीण - अरै बीरा कुरड़ा- ओ कांई करै है। भाई हरसै नैं छोड़ दे। डाव री जे थारै कालै नहीं आज ईज अड़ी है तो हूं थारा डाव चुकास्यूं। कालै नहीं, अब री स्यात- ईं घड़ी। (कैय'र वा हरसै नैं छुडावै है।)
कुरड़ो - (हरसै नैं छोड'र) भैण जीण! म्हनैं थारी बात रो पूरो पतियारो है। जे तूं हामळ भरै है तो चाहे डाव कालै ही चुका देई पण हरसै रो म्हानैं तिल भर भी पतियारो नहीं है। ओ सदा सूं ही राफड़गारो है।
हरस - (आपरै डील री धूड़ झाड़तो उठै है अर कुरड़ै कानीं करड़ी मीट सूं देख'र) कुरड़ा! थारै आईज घणी आंट है तो हूं हणाई थारो डाव उतारस्यूं। (आपरै भीड़िया नैं हंकारै है।)
(उणी समै सामली गळी सूं कुरड़ै री मां तीजां कुरड़ा! कुरड़ा! रो हेलो मारती रोळा-रब्बा करती आवै है।)
तीजां - ओ कांई ख्याल मांड राख्यो है? घरे कोर्ह काम कोनी कांई? ऊंट-भैतां रै दावणां देवणां है अर गायां-भैंस्यां नैं थारो बाप दूवैला कांई? चाल घरै बळ।
कुरड़ो - (बिरगरा'र) मां तूं चाल। हूं ओ डाव खेल'र हणाई'ज आवूं हूं।
तीजां - (रिसाणी हो'र) चालै है का नीं? म्हानैं जाणै कोनी कांई? हूं इसी करूंली जको खा'रै कुत्ता खीर। हूं खेत मांय आखै दिन पचती-खपती आई हूं अर तूं खागड़ री दाई उछळतो-रमतो हांडै है।
कुरड़ो - (हाथ जोड़'र) मां, बस ओ अेक इज डाव है।
तीजां - आयो है डाव रो मनकार्योड़ो।
(तीजां उण रो बुकियो झाळै'र ठरड़ती घरे ले जावै हैं। आखा खिलाड़ी उण री हंसी-मखोल उडावंता आप आपरै घरे जावै है।)
हरस - भैण जीण! आज जे तूं कुरड़ियै बिचाळै नहीं पड़ती तो म्हाटो आपां नैं सोपै तांईं पिदावंतो। तूं कितरी वाल्ही लाडेसर भैण है।
जीण - अर तूं कितरो फूटरा? मेरो कान्ह कंवर सो जामण जायो बीर है।
(दोनूं हंसता मुळकता आप रै घरै जावै है।)
दूजो दरसाव
(ठौड घांघू रो महल। समै - भाखफाट्यां।)
गांव घांघू रा डोकरा अधिपति आपरै गढ़ मांय सज्योड़ै कमरै मांय अेक ढोलियै पर सूत्या है। पसवाड़ै अेक कानीं मूढ़ै पर पीकदान अर दूजी कानीं पाणी री झारी पड़ी है। कंवर हरस दूजै ढोलियै पर आडो हुय रैयो है। दीवट रो मंदो-मंदो च्यानणो कमरै रै अंध्यारै नैं भगावण नैं जूझै है। डोकरा चाण चुकै खांसै है।
हरस - क्यूं बाबोसा! अब जीसो'रो हैं कांई?
(बाबोसा उठणैं री चेस्टा करै है - मंूडै सूं कफ रा डचका नीसरै है। हरस अंगोछै सूं पूंछै है।)
हरस - कफ नीसरणैं सूं छाती क्यूं उरळी होई होसी? बाबोसा! पाणी लाऊं कांई?
बाबोसा - हां, अब कफ नीसरणै सूं सांस की सो'रो आवण लाग्यो है। थोड़ै नूं निवायैै पाणीं सूं कुरळा तो करवा।
(हरसो कुरळा करवा'र अंगोछै सूं मंूडो पूछै है।)
हरस - अब कीं थोड़ा ठीक हो नैं बाबोसा?
बाबोसा - हां लाडी। डील मंे कीं सोर'प बापरी है।
हरस - अब थोड़ी ताळ सोय जावो तो ठीक है।
बाबोसा - बेटा! अब म्हांनैं सोवणां हां जितरा सोय लिया। अब तो सदा नैं सदा सारू इज सोवणो है। मेरा पिराण जावण वाळा है। पण, बेटी जीण में अटक रैया है।
हरस - बाबोसा! थे बाई जीण री राई-रत्ती भी चिंत्या-फिकर मत करो।
बाबोसा - लाडी! इण भोळी-भाळी चिड़कली नैं छोड'र जावंता जी घणो दो'रो है।
हरस - बाबोसा! बाई रो आप इत्तो सोच क्यूं करो हो? हरस पर आप नैं कांई विस्वास कोयनीं?
बाबोसा - थारै पर तो विस्वास-भरोसो घणो इज है बेटा। पण......
हरस - पण, पण कांई बाबोसा?
बाबोसा - म्हनैं था पर तो पूरो पतियारो है पण वा थारी जोड़ायत-पराई जाई कांई थारी म्हारी दांई इण भोळी-ढाळी चिड़कली नैं हेत प्यार दे सकैली?
हरस - क्यूं नहीं? वा अवस मां री दांई बाई नैं हथेळयां पर राखैली।
बाबोसा - हूं सांझ-सवेरै दोनूं बखतां उण नैं हेलो दे'र बुलावंतो। निहोरा-बाड़ी काढ़'र उण नैं अपणै साथै जिमावंतो।
हरस - अब भी, उण री भौजाई आपरी दांई बाई जीण नैं जिमावैली। आप कीं बात रो विचार मतना करो बाबोसा। जीमणै रै बखत, उण नैं कुण याद करैला। उण री भोजाई उण नैं आपरै गोडै कनै बिठा'र जिमावैली-उण री मनवार करैली।
बाबोसा - बा बारै रसोई रै कूंळैं कनैं ऊभी रोवैली। उण भोळी - ढाळी चिड़कली नैं बा पराई जाई कीकर मनावैली? (आंख्यां सूं टळक-टळक आंसूं पड़ै है। हरसो अंगोछै सूं पूंछै है।)
हरस - बाबोसा! आप अन्तकाळ रै समै इण भांत जीदो'रो मत नां करो। राम रो नांव लेवो, हरि नैं सिंवरो।
(बाबोसा री आंख्यां रा कोडिया भूंईज जावै। हंसलो उड जावै है।)
हरस - हाय म्हारा बाबोसा! म्हानैं छोड'र सिध चाल्या ? अब म्हारो कुण धणी ?
(थोड़ी ताळ में घर बा'र रा लोग आ पूगै है।)

तीजो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़)
गढ़ रै अेक कमरै मांय हरसै री बूढ़ीया मां ऊपरला सांस लेवै है। हरसो उण री नाड़ी झाल्यां बैठ्यो है। आड़ोसी-पाड़ोसी बूढ़ी-बडेरी लुगायां अठीनैं-बठीनैं बैठी है। अेक दो लुगायां जीण नैं उण बखत आप रै घरै ले जावै है।
हरसो - मां सा! कांई कीं कैवणों चावो हो?
(मांजी उठणैं खातर टसकै है। हरसो उण री पीठ अर नाड़ रै सहारो लगा'र बैठी करै है।)
हरसो - मां सा! आप रै मन में है तो फरमावो। कीं दान दिखणां! बीजी कांई मन मेें हुवै तो आप हुकम करो। थारो बेटो त्यार ऊभो है।
मांजी - (अठीनैं-बठीनैं फाट्योड़ी निजरां सूं कीं ओळखणै री चेस्टा करै है। हळवां-हळवां...) जीण कठै है? दीसी कोयनी?
हरस - आपरी बेल्यां साथै पाड़ोस्यारै घरे गई है।
मांजी - हरसा बेटा! मेरो जीव जीण खातर डाडर गूंथेला? तीज त्यूंहारा पर कुण उण रै मेहन्दी मांडैला?
हरस - मांजी आप अब उण री फिकर छोड'र आखरी बखत राम रो नांव लिरावोनी।
मांजी - अब कुण उण रा सिंजारा करैला? कुण उणनै। रुस्योड़ी नैं मनावैला। उण नैं बात-बात पर रुसण री घणी बाण है लाडी।
हरस - मंाजी! आप इण बातां सारू अब क्यूं जीव दो'रो करो हो? अै आखा काम जीण री भौजाई करैला।
मांजी - जी मानैं कोनी बेटा! बा पराई जाई क्यूं इतरा काम करैली?
हरस - वा नहीं करैली तो मांजी हूं तो हड़दम हाजर हूं। म्हारी लाडेसर भैनणी जीण रा हूं लाड कोड करूंला।
मांजी - हरसा जे तूं पेटै पाप राखैला तो हूं दरगाह में थारी दामणगीर बणूंली। म्हारी आतमा हरमेस भटकती रैवैली।
हरस - मांजी! थे बाई जीण री रत्ती भर भी चिंत्या-फिकर मत करो। हूं बाई सा सारू सोकीं करूंला।
मांजी - म्हारी जीण नैं अेकली नहीं छोड़ैला। (सांस अटकै है।)
हरस - अै म्हारा आप सूं कोल-बचन है मांजी। उणनैं परणा'र सासरै खिनाऊंला। जद ताईं नहीं परणीजै ली हूं उण रै साथै हूं। थे पूरो भरोसो राखो मांजी- पूरो भरोसो राखो।
(मंाजी निढ़ाळ हुय'र नाड़ गेर देवै है। गळै मांय गयोड़ा सांस बारै नहीं आया। आड़ोसण-पाड़ोसण रोवा कूको मचा देवै है।)
चौथो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़। हरसै रै माइतां रै सुरगवास हुवणै रै पांच-सात बरसां फेरू-समै-दिन उगाळी।)
जीण - हां तो भौजाई! थे म्हनैं किण-किण रै साथै कणां-कणां ओलै-छानैं बतळावंता देख्या?
भौजाई - बाईसा! हूं कूड़ को बोलूं नीं। म्हैं म्हारी आंख्यां सूं तो थानैं किण सूं बंतळ करता को देख्या नीं।
जीण - भळै? कुण थानैं म्हारै बारै में लगावणां-बुझावणां कर्या? कुण म्हारी सोक थानैं मो'सा बोलिया?
भौजाई - बाई सा! अब हूं थानैं किण किण रा नांव गिणाऊं? जिण गळी मांय'र नीसरूं उणी में थारै संगी बेलियां रो चुगरो सुणीजै।
जीण -(रीसां में राती हुवंती) भौजाई! कूड़ मत भाखो। किण रै लगायां-बुझांया किणी बात रो पतियारो मतनां करलीज्यो। लोग तेरी-मेरी करणै अर भाठा-भिड़ावण में घणां घात रग है।
भौजाई - तो हूं जाबक कूड़ी? जकी बातां कानां सुणी, आंखी झूठी? अर थे बाईसा! जाबक खरा?
जीण - भौजाई! सोनै रै काट को लागै नीं। लोगां रो कांईं? वै तो किणी नैं सुखी अर सो'रो को देखणां चावै नीं। म्हारै माइतां रै सुरगवास हुवणै रै पछै, बीरो हरस जितरी रिछपाळ अर खेवट करी है-वा किण नैं सुहावै है।
भौजाई - वा तो ठीक है, पण आटै में तो लूण खटाज्यावै - लूण में आटो कीकर? थोड़ी बहोत कीं सांच हुवै जदी तो उण रै पर पांख्या लाग'र इन्नैं-बिन्नैं उडै।
जीण - हां भौजाई! थारो कैवणों खरो। पण आ दुनियां घणी चालू। वा खावै आपरो अर निंदा करै पराई। आपां दोनवां नैं हंसतां-बोलतां देख'र बानैं घणी अखरै।
भौजाई - थारै भाई नैं भी तो लोग ऊंधी-सूंधी बातां कै'र भंगरावै है नीं।
जीण - म्हारै बीरै हरस नैं कांई भिड़ावै है?
भौजाई - लोग उणां रै बहकारै है कै थारी भैण जीण नैं जुवानी फोड़ा घालै है। बा अरण-बरण रै लफंगा साथै ओलै-छानैं बंतळ करै है।
जीण - (अंचभो करती आंख्यां आडी दोनूं हाथ दे'रं) भाई उण री बातां रो पतियारो कर लियो?
भौजाई - भाई कांई पड़ूत्तर देवै? घर हाण, लोकां हांसी। बिनां मां री बेटी जाण'र वै थानैं कीं कैवै कोनी। कैंवतां संको करै। इणीज कारण इण चुगरै सूं आजकालै वै मन ई मन घणां घुटता रहवै।
जीण - कांई चुगरो?
भौजाई - ओ इज चुगरो कै जीण गांव रै रूळ टींगरा साथै बंतळ करै। थारो भाई भी सोचै कै बींद रै मूंडै जद ल्याळ पड़ै तो जनेती कांई करै?
जीण - (जाड़ पीस'र) बस करो भौजाई। हूं सो'क्यूं जाणगी। थे म्हारै बीरै री आड मे थारै मनड़ै रो काळूंस उजागर करो हो। म्हैं थानैं इण घर मांय फूटी आंख्यां इज को सुहावूं नीं।
भौजाई - हां, बाईसा। दो'रा रैवो चाहे, सुणीजै नीं। इण बदनामी सूं थारा भाई सूक'र खेलरो हुग्या। कुठोड़ लागी अर सुसरो बैद। इन्नैं पड़ै तो कूवो अर बीन्नैं पड़ै तो खाड। बै किण रो मंूडो पकड़ै?
जीण - तो आ बात है? म्हनैं इत्तै दिनां ठा इज को हो नीं।
भौजाई - थानैं ठा'क्यूं हुवै? मौजां माणो हो अर मस्ती करो हो। काया तो घुळ-घुळ'र म्हारी पींजर हुवंती जावै है।
जीण - बस करो भौजाई। अब हद पार मत करीज्यो-सीमा मत उळांघज्यो। जुबान रै लगाम दिरावौ। म्हैं अब और कीं भी नीं सुणणो चावूं। बदनामी रो ओ ठीकरो म्हारै सिर पर?
भौजाई - और किण रै सिर पर? कुचमाद री कोथळी तो थे इज हो।
जीण - (मंूडो बाय'र) म्हैं? म्हैं?
भौजाई - बीजो और कुण?
जीण - (रीस में धूजती, पग पटक'र) तो आ चाली। काठो राखो थारो टापरो।
(जीण रोवंती-डुसका करती तळाव कानीं जावै है। भौजाई भी अेक खाली घड़ो ले'र चालै है। उण रै आगै बीजी पणिहार्या रिगली-टसकोळी बंतळ करती जावै है।)
अेक पणिहारी - आजकालै जीण रो कांई कैवणो? जाणै सारै गांव री जुवानी इण अेकली मांय ही बड़गी।
दूजी पणिहारी - अेहड़ी जोध जुवान बेटी घर में कीकर खटावै? जै आ परण्योड़ी हुवंती तो अब तांई अेक दो टाबरां री मां बण जावंती।
पैली - डावड़ी ! इण नैं कुण परणावै? मां-बाप तो सुरगां सिधारग्या। भाई-भौजाई रै कांई आंट? (सुण'र लारै बगती भौजाई रै तन-बदन में आग-पळीता लाग जावै है। बा पूठी घरै आ'र मुं-माथो ले'र मांचलियै में पड़ जावै है।)

पांचवो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़। हरसै कीं गांवतरै संू आ'र ऊंट नैं झोक में बांध'र नीरा चारी करै है। पोळी में बड़'र अठीनैं-बठीनैं जोवै है। जीणनैं हेलो दे'र।)
हरस - जीण! ओ भेण जीण! कठै है?
(अपणै आप सूं) उण री भौजाई भी कोनी दीसै? दोनूं कठै बारै गयोड़ी दीखै। सायद पाणी ल्यावण तळाव पर गई हुवैली। (आपरी तरवार अर कमर पेटो, रक्खी आद उतार खूंटी टांगै है। कमरै में अेक कानीं खाटली में पड़ी आप री लुगाई रो ठणकणो सुणीजै है।)
हरस - अरै तूं अठै है? ओ बखत कांई सोवणै रो है - अर तूं रोवै कीकर है? कांई हुयो? सब कुसळ मंगळ तो है नीं। भैण जीण भी को दीसै नीं, कठै गई?
लुगााई - (रीसां मांय सुबकती-सुबकती) कूवै में।
हरस - कूवै में। पण क्यूं?
लुगाई - आपरै जणीतां नैं रोवण नैं।
हरस - तूं कांई बोलै है? म्हारैं कीं समझ में नीं आवै।
(लुगाई हळवां-हळवां उठ'र खाट पर बैठी हुवै है। राती-चुट आंख्यां सूं चौसरा चाल रैया है।)
लुगाई - थारै कांई समझ मांय आवै? थानैं सौ-सौ बार कै दियो कै इण लाडेसर भैण रा हाथ पीळा कर'र धारियै चढ़ावो-नहीं तो आ आपणा मंूडा काळा करावैली। पण थानैं तो गिनरत इज कोनीं।
हरस - थानैं कांई ठा गिनरत कोनीं। ठा नीं कितरै गांवां में गोता खा'र आयो हूं? कोई जोड़पै रो घर-बर मिलै जद नीं।
लुगाई - तो कांई कुंवार कोटड़ो चिणा'र आखी ऊमर आपणी छाती पर इज मूंग दळती रहसी? हूं तो लोग लुगायां री चुगली अर चुगरो सुणतां-सुणतां नाक-नाक आइजगी। म्हारी तो छाती में ढमीकड़ा बंधग्या।
हरस - पण, अब वा है कठै? बता तो सरी?
लुगाई - म्हां सूं राफड़-झगड़ा करती, लड़-झगड़'र ठा नीं कठै गई है।
हरस - थारै सूं गोधम? इसी कांई बात हुयग्यी?
लुगाई - बात कांई? सांझ-सवेरै अेक ही बात। हूं कैयो, बाई सा। आप अब जोध जुवान हुग्या। आपनैं ओपरै छो'रा सूं ओलै-छानैं बंतळ करणी फुटरी बात कोनीं।
हरस - भळे?
लुगाई - भळे कांई? होम करतां हाथ बळै है। सुणतांईं बा तो म्हारै पी'र वाळा नैं बखाणणा सरु कर दिया।
हरस - अर तूं सूुणती रैयी?
लुगाई - हूं कांई उण सूं दूबळी हूं। म्हनैं च्यार सुणाया तो हूं आठ सुणा'र थांरी पीढी उथळ दी।
हरस - दोनूं बराबर होई? थां उण सूं कांईं घाट थोड़ा घालो हो?
लुगाई - म्हारा अमीणा सुणतां ई ठा'नीं कठीनैं टुर भीर होई?
हरसो - तूं चोखीकरी। (कैय'र जीण नैं सोधण जोवै है।)
छठो दरसाव
(जगां- तळाब रो मारग। केई पणिहार्यां रीता घड़ा लियां तळाब कानीं जावै है। केई पाणी भर'र सखी-बेल्यां साथै हंसी ठिठोळी करती पूठी बावड़ै है। केई मिनख ऊंटां पर पाणीं री चौखड लावै है तो बीजा, एवड़ अर गायां भैस्यां नैं पाणी पा'र लावै है। तळाब को रुखाळो हाथ में तासळी लियां पायतण रै मांही गोबर मींगणा चुग-चुग'र बारै न्हाखै है। टाबर पायतण रै बा'रै पड़ी सीलां माथै सिनान सिपाड़ा करै है।)
हरस - (खाथो-खाथो चाल'र दूर जावंती जीण नैं हेलो दे'र) जीण! ओ भैण जीण! थमज्या। थमज्या। .... हूं आवूं हूं। जीण बावड़'र हरस कानी जावै है अर पूठी चाल पड़ै है।)
हरस - (जोर-जोर सूं) जीण सुणीज्यो कोनीं! जीण! हूं कैवूं हूं पूठी घरै बावड़ज्या।
(जीण हरस रै हेलां री अणसुणी कर'र कानां तळै मार'र उतावळी-उतावळी तळाब कानी जावै है।)
हरस - (डीघा-डीघा डग भरतो उणनैं नावड़'र अडवार दे'र साम्ही ऊभो होय जावै है।) अब बोल। कीकर जावसी? कितरा अणमेघा रा हेला दिया। तूं तो गिनारै इज कोनी। चाल घरै पूठी चाल।
(जीण फाट्योड़ी अर काई निजरां सूं हरस कानी जोवै है। कीं बोलणी चावै है, पण गळो भरीज जावै है।)
हरस - म्हारी लाडेसर भैण! तूं इयां घर सूं रूस'र कीं कैयां-सुण्यां बिनां ही कीकर अर कठै भीर हो पड़ी।
जीण - भाई! म्हनैं जावण दे। थे पूठा घरै चल्या जावो।
हरस - भैण! थानैं कठै जाणवद्यूं? अर थानैं साथै लियां बिनां कीकर घरै पूठो बाबड़ू?
जीण - (आंसू टहकावंती, गळगळी होय'र) बीरा! आज जे इण धरती पर जे म्हारी मां हुंवती तो इण भांत कुंवारी बेटी घर सूं कीकर निसरती?
हरस - भैण! जे मां नीं है तो कांई हुयो? थारी भौजाई तो थारै मां सरीखी इज है। अब तो उण नैं ही मां समझणी पड़ैली।
जीण - ठीक है भाई! पण, मां बिनां कुण म्हारो सिर पुचकारैलो। कुण म्हारा आंसूड़ा पूंछलो?
हरस - लाडेसर भैण! ओ थारो बीरो थारो सिर पुचकारैलो- ओ हरस थारो आंसूड़ा पूंछलै। तूं अेकर म्हारी बात सुण'र सांभळ तो सरी। (उण रो सिर पुचकारणो चावै है बा परै सरक जावै है।)
जीण - बीरा म्हानैं आडी मत दे, जाण दे। (हरस रो हाथ परै करै है।) आज म्हारै हिवड़ै में लाय पळीता लागरैया है। आज मां अर बाबोसा री घणी ओळूं आवै है। (हिचक्यां चढ़ै है।)
हरस - (बुचकार'र) भैण !
(हरस रै ही आंसू झरै है बो आंसूं पूंछै है।)
जीण - बस भाई! अब कुण म्हारै मनड़ै री बात पूछै? कुण म्हारै अंतस री पीड़ समझै? कुण म्हारा उळझ्योड़ा केस सुळझावै? आज म्हारी पीड़ री सींवा टूटगी - दु:ख रो दरियाव उफण रो है। म्हारो मारग छोड़ दे बीरा!
हरस - हूं मारग कीकर छोड़द्यूं? हूं थानैं घरै पूठो ले जा'र इज मानूंला।
जीण - बीरा! आज हूं घणी अभागण हूं। म्हारै मारग में आडी मत दे। आज बाबोसा होवंता तो म्हारी अेहड़ी कोजी गत देख'र मून रैवंता? बै म्हानैं हथेळां मांय राखतां। घणो हरख अर कोड सूं चोखो फूटरो घर-बर देख'र म्हनैं परणावंता।
हरस - भैण! बाबोसा रै अै सारा कारज पूरा करूंला। लाडेसर! ओ कांई म्हारो फरज कोयनीं के? हूं थानैं घणै धूमधडाक़ै सूं परणावूंला।
जीण - जाणै समझै जद तो घणां ही फरज है थारा। तूं म्हानैं चोखी चूनड़ी उढ़ाई बीरा।
हरस - चूनड़ी? किसी चूनड़ी?
जीण - हां बीरा! और कांई कैवूं? पण, इण में थारो दोख कोनी। आ तो जुग-जुगां री घणी पुराणी रीत चाली आवै हैं।
हरस - कांई रीत?
जीण - आ इज रीत कै, मरद रो ब्याव हुंवता ही बो लुगाई रो हुय जावै हैं। मां भैण री प्रीत नैं बिसार देवै है।
हरस - म्हारै साथै आ कदै ही नीं होय सकै म्हारी लाडली भैण।
जीणं - हुवंती आई है बीरा। जकी मां आप खुद आलै-गीलै गाभै में सोय'र बेटा-बेट्यां नैं सूखा में सुवावै, जिण बेटै नैं बीस-पच्चीस बरसां तांई अंडे री दांई सेवै, बो लुगाई आवंता ही बीस-पच्चीस दिनां मे ही मां नैं दू'र-दू'र अर छी'र -छी'र करण लाग जावै । हरस - आ नीं होय सकै म्हारी भैण। थारी भौजाई म्हानैं चोखी लागै अर थू खारी।
जीण - आ तो सांपरतै ही होर्यी है बीरा। पण म्हनैं आ तो बता, हूं थारै सूं कांई आधो राज मांग्यो? धन दायजो मांग्यो? भैण-बेटी तो तीज-त्यूंहारां कुड़ती-कांचळी सूं ही राजी, जे बार-त्यंूहार पी'र मंगाव लेवै तो बै आपोआप नैं बड़भागड़ समझै। इणां सूं बती-बता तो खरी बै और कांई चावै?
हरस - म्हारी जामण जायी भैण! जो कीं भी हुयो है, उण नैं बिसार दे। हूं थारी आखी वांछावां नैं संपूर्यूं सूं - थानैं तूठसूं। अेकर तूं म्हारै साथै आपणै घरै तो चाल।
जीण - आपणै घर है कठै बीरा! बो घर तो थारी लुगाई रो है। धन धणी रो, गुवाळियै रै हाथ गे'ड।
हरस- भैण! तूं आ बात म्हानैं मत कै। तूं जाणै कोनीं हूं और भांत रो मिनख हूं। म्हनैं तूं रीसां मत नां दिरावै। (आपरै हाथां रै बटका बोडै है।)
जीण - भायड़ा! म्हनैं तू अब मनावण आयो है जद कै म्है अंतरजामी सूं लौ लगा चुक्यी हूं। हूं अब इण जगती रै आखै जाळ-जंजाळ रै तोड़'र, भाग'र इणां सूं मुगत होय चुकी हूं।
हरस - भैनड़ी! तूं अेकर म्हारी बात तो सुण।
जीण - नां बीरा नां। अब हूं कीं री कीं ंबात नीं सुणुली। अब कीं नीं होय सकै। म्हनैं म्हारै नेहचै सूं कोई नीं डिगा सकै। विधाता रा लेख कुण टाळ सकै हैं? आ तो पगां हेठळी लाव ही, जकी निसरगी। औसर चुकी डुमणी गावै ताळ बेताळ।
हरस - पण छेकड़ बात कांई है? तूं म्हनैं बता तो सरी। आ इतरी दोरप अर आंट कीकर? थारी भौजाई थानै कै ताना मार्या कै मौ'सा बोल्या? कोई करड़ी अर आकरी बात तो नीं बोली? कैयां इज ठा पड़ै। थानैं कांई दु:ख दियो?
जीण - बीरा अब इण बातां सूं कांई हुवै? बीती ताही बिसार दे- आगै री सुध लेही। गई बातां नैं तो घोड़ा ही कोय नावड़ै नीं।
हरस - नीं भैण! थानैं म्हारै गळै री सोगन है। थारी भौजाई जे थानैं सावळ-कावळ कैयी है तो हूं उण रै माजनैं रा टका झाड़ देवूंला। उण री खाल में तुस भरवा न्हाखूंला। बा म्हारी जामण जायी लाडेसर भैण नैं होठं रो फटकारो तो नीं दे सकै। हूं उण री जीभ काढल्यूंला। तूं म्हानै बता तो सरी। हूं उण में इस्सी करू जको खा नैं कुत्ता खीर।
जीण - थारै जे सुणनैं अर जाणणै री घणी गळदांई हुय रैयी है तो सुण। भौजाई म्हानैं उठतां-बैठतां, खावंता-पीवंता, सोवंता-जागतां हरदम गाळ्या ठरकावंता रैवै। तीरिया मारता रैवै।
हरस - जीण! खरी-खरी कैयी। रत्ती भर ही कूड़ मत भाखी। कूड़ सूं म्हानैं घणी रीसां आवै। जीण - हूं कूड़ क्यूं भाखूं? म्हनैं किण रो डर है कांई? होई-होई कैवूं। सूरज भगवान गवाह है। अेकर हूं तळाब पर पाणी भरण नैं गई साथै मोकळी साथण-बेल्यां भी ही।
हरस - अर थारी भौजाई?
जीण - सुण तो सरी। भौजाई भी ला'रै-ला'रै चालै ही। बा म्हनैं सुणा'र अेक साथण नैं कैया कै नखरा तो देखो म्हारी बाईसा रा। कीकर दीदा मटका'र चालै है, जाणै आखै मुळक री जुवानी इण अेकली में ही आ पड़ी।
हरस - हूं ..........।
जीण - हूं कांई? सुण'र म्हारै डील मांय सरणाटो सो होयो। तन-ंबदन में झाळा-पूळा सा लागग्या। म्है बीं बखत ही तळाब मे डूब मरण रा मत्तो उपायो, पण बीरा म्हारा, इण सूं कुळ में कळक लागणै रो डर हो।
हरस - फेर?
जीण - फेर कांई? बीं बखत हूं अेक करड़ो संकळप लियो।
हरस- कांई संकळप?
जीण - इण तळाब की पाळ पर ऊभी होय'र हूं सूरज भगवान नै साक्षी बणा'र म्है अेक सोगन ली।
हरस - (उतावळो बूझ्यो।) कांई सोगन ली?
जीण - हे सूरज देवता! हूं किणी परबत पर जा'र भगवान री तपस्या करूली। भौजाई रै लगायेड़ै कूड़ै कळंक नैं उतार'र उजळी बणूंली।
हरस -जे कीं हुयी घणी माड़ी। भैण तूं उण बातां नै जड़ा-मूळ सूं बिसर्यज्या। आपणै टाबरपणै री बातां नैं चेतै कर अर घरां चाल।
जीण - नहीं, नहीं। अब आ कदै ही नहीं होय सकै। भौजाई जे ठूळां सूं जे म्हारा हाडका भांंग न्हाखती.....जे म्हारी बोटी-बोटी बाढ़'र चील-कांवळां नैं फेंक देवंती तो म्हनैं कोई दु:ख दरद कोनी हो। पण, ओ तो अेक रजपूतणी रै शील पर सीधो घात है। म्हारै सत पर डा'म है। इण नैं हूं कीकर सै सकूं हूं।
हरस - तूं घरै चाल तो सरी। हूं थारै सारू अळगो मिंदर चिणा देस्यूं। तळाब अर बावड़ी खुणवा देस्यूं।
जीण - नहीं म्हारा बीरा! अब कीं नहीं हो सकै। चाहे सूरज भगवान अगूण छोड'र आथूण उगण लाग जावै, भागीरथी गंगा चाहे हिवांळै पर पूठी चढ़ जावै। आंकड़ां रै आमां अर नीमड़ां रा मतीरा लाग सकै है, पण जीण थूक'र चाटणो को जाणै नीं। हरस - जीण! तूं इतरी करड़ी .........कीकर बणगी?
जीण - बीरा म्हारा ! म्हनैं आपणै टाबर पणै री आखी बातां री ओळ्यूं आवै है। उण इतरै तगड़ै लाड-कोड नैं अेक पराई जायी कीकर तोड़ न्हाख्यो ? आ बात म्हारै काळजै में कंाटां री दांई खुभै हैं।
हरस - पराई जायी - कुण है पराई जायी?
जीण - इतरो भोळो-बचकूकर मन बण म्हारा बीरा! तूं जाण-बूझ्तो कानां में कोया लेवै है। पराई जायी है, म्हारी भौजाई -थारी कामणगारी लुगाई। आवंता-आवंता ही इज अेक ही मां रै ओदर मांय लोटणियां भाई-भैणां में अणूतां आंतरा घला दिया। आपां दोनू भाई-भैण अेक ही आंगणियै मांय रम्या। किलकार्यां मारी। अेक ही पालणै हींड्या अर अेक ही थाळी मांय जीम्यां। अै कोई भूलण जोगी बातां है? अेक ही इत हीडै पर उबल्यां मचकायी। हरस - भूलज्या भैण, उण बीती बात्यां नैं अब इण भांत चितारणै सूं कांई लाभ। तूं इतरी निरढ़ाळ मत होवै। ओ थारो जामण जायो बीर अब भी थारै साथै है।
जीण - म्हारै साथै कीकर? आ बात म्हारै हिड़दै ढूकी कोनी।
हरस - हूं भी थारै साथै चाल'र परबत पर तपस्या करसूं।
जीण - (हरस रै मूंडै पर हाथ मेलतां) नां-नां बीरा म्हारा। थानैं इयां करयां कीकर सरै? थे जे तपस्या करणै डूंगरा जावोला तो थारै बदळै कुण राज करैला-कुण पिरजा री देख-भाळ करैला ? थारै लारै भौजाई अेकली झूरैली। थे पूठा घरे चला जावो। नहीं तो आपणो बंस ही खतम हुय जावैलो। अर हूं कुळ खपावणी बाजूंली।
हरस - इण सूं तो कुळ रो नांव घणो उजागर हुवैलौ। मांयतां रो जस बधैलो।
जीण - देख बीरा! हूं भळै कैवूं हूं। तूं पूठो बावड़्ज्या। पिरजा अर भौजाई री पीड़ भी तो सोच।
हरस - ठीक है। हूं थारी बात मान'र पूठो घरे चल्यो जासूं। पण, म्हारी अेक सरत है।
जीण - (उण रै मूंडै कानी जोय'र उतावळ सूं) बा कांई?
हरस - सरत आ इज है कै तूं म्हारै साथै पूठी घरै चाल। थारी भौजाई उडीकती हुवैली।
जीण - नां बीरा! आ तो अेकदम अजोगी बात है।
हरस - तो म्हारो पूठो बावड़णो बी जाबक अजोगो है।
जीण - (निसासो न्हाख'र) बीरा! तरवारां रा घाव भर सकै है, पण बोली रा घाव कदै नीं भर सकै। फाट्योड़ै दूध रै जावण लाग सकै है। पण, फाट्योड़ा मन भळै नहीं मिल सकै।
कांच कटोरा नैण जळ, मोती मानस मन्न।
इतरा तो फाट्य नां मिळै, लाख करो जतन्न।ं
हरस - म्हारी लाडेसर भैण! हूं मां सूं जिका कौल-बचन कर्या हा, म्हैं उणां सूं मुकर नहीं सकूं। मरती बेळा, मां म्हनैं थारी भोळावण देवंता बचन लिया हा। बोली म्हारै डाडर मेें जीव अटक रैयो है। जीण री फिकर कुण करसी? बा किण सूं रूसणा रूसैली? किण नैं मां कैय'र बतळावैली?
जीण - मां और कांई कैयो?
हरस - मां कैयो हो कै हरसा! जे तूं जीण सूं पेटै पाप राखैलो तो म्हारी आत्मा भटकती रैवैली अर हूं दरगाह मे थारी दामणगीर बणूंली। जीण - थे मां नैं कांई पड़ूत्तर दियौ।
हरस - हूं मां नैं पूरो पतियारो करायो कै मां तूं जीण सारू राई-रत्ती भी चिंत्या मत कर। हूं बाई रै खातर कोई काण-कसर नहीं राखूंला।
जीण - बाबोसा भी आपरै अंतकाळ रै बखत कीं फरमायो हुवैला?
हरस - हां भैण, बाबोसा भी आपरै छेकड़लै बखत थारै खातर घणां अणमणा हा। अटकता-भटकतां बै बोल्या कै हूं उण भोळी-ढाळी चिड़कली नैं छोड'र जावूं हूं। अंब कुण उणनैं जिमावैला। जिमणै री बेळा बा रसोई री कूंळै ऊभी कूकैली।
जीण - था बाबोसा नैं कांई भरोसो दिरायो।
हरस - हूं उण नैं घणो भरोसो दिरा'र थ्यावस बंध्यायो कै आप किणी बात रो कळाप मत करो। हूं बाई नैं हथैळी ऊपरां राखूंला। अब हूं बचन नहीं तोड़ सकूं। थानै अेकलड़ी नहीं छोड सकू।
जीण - अेकर भळै सोच ले बीरा! पिरजा अर भौजाई री सोच। आगै आस औलाद री सोच। हरस - अब मन्नै नीं पिरजा रो सोच है अर नीं थारी भौजाई रो। आस -औलाद री हूं कांई सोचूं? म्हनैं तो मांयतां नैं दियोड़ा बचनां री याद है। अब खाली मौत इज आपां नै अळगा कर सकै। थानैं जे इण भांत अेकली छोड'र घरै पूठो बावड़ज्यावूं तो सुरगां में मांयतां नैं कांई मुंडो दिखावूंला। जीण - तो पूठो नहीं जावणो है ओ ही छेहलो दिरढ़ विचार है? हरस - सापरूसां रा अेक ही बचन है। हूं अपणै काल पर। आव चालां आपां दोनूं परबतां पर जाय'र तपस्या करस्या।
(दोनूं भैण-भाई खाथा-खाथा चाल'र दूर परबत री चोटी पर चढ़ता दिसै।)
टिप्पणी - जिला सीकर मांय रैवा सांगा सूं दिखणादै कानीं आयबल गिरि माळा री उपत्यकाम मे ंपरबतां रै शिखरां पर अेक कानी हरस अर दूजी कानी जीण री तपस्या लीन मूरत्यां है। शेखावाटी छेतर मांय जीण माता जी री घणी मानता है। बरस में दो बार चेत अर आसोज में जीण माता रा मेळा भरीजै, जिणां में लाखूं सरधालू भगतां री भीड़ हुवै। जात-झड़ूला अर बीजी मानतावां सारू मारवाड़, अर कलकता, बम्बई अर दूजी ठौड़ा सूं जात देवण नैं आवै।)