संस्मरण - थप्पड़ पड़ता गया - मूंडो फिरतो गयो

सन् १९३० रै अड़गड़ै रतनगर (चूरू) में किणी दो समुदायां रै बीच फौजदारी हुयगी। केस चूरू अदालत में चाल्यो। तहसीलदार नैं थर्ड क्लास मजिस्ट्रेट रा पावर हुवंता। मुद्दई (वादी) रै पख में च्यार गवाह हा। तीन तो घणा चातरक, पण चौथा पंडित स्योबगस जी लढ़ाणियां भोळा-ढाळा बामण।
लोग बतळावण करी कै तीन गवाह तो स्याणा है, पण पंडित जाबक भोळो। मुद्दई नैं हरा देसी। अै बयान ठीक ढंग सूं नीं दैय सकैला।
खैर ! तारीख पेसी पर अदालत में जद हाकम बूझ्यो, ' मुद्दई को पीटा उस समय उसका मुंह किस दिशा में था?'
पैलो गवाह उतराध, दूजो दिखणाध अर तीजो अगूण बतायो।
अब चौथै गवाह पं. स्योबगस नैं हेलो हुयो। बै धूजता-धूजता हाकम रै सांमी पेस हुया। हाकम बोल्या, 'महाराज! सच-सच बताना।'
'हां सा, साव साच-साच कैवूंला।' हाथ जोड़'र पंडित जी बोल्या।
हाकम बूझ्यो कै 'मुद्दई को जब पीटा गया तो उसका मुंह किस दिशा मे था।'
'सा, मंूडै रो कांई ? थप्पड़ पड़ता गया अर मूंडो फिरतो गयो।'
कोरट में ऊभा लोगां रो हांसता-हांसता रो पेट दूखण लागग्यो।
तीन स्याणा-स्याणा बाजण वाळा गवाह तो न्यारी-न्यारी दिसा बता'र मामलो बिगाड़ दियो हो, पण चौथा गवाह पंडित जी आपरी गवाही सूं सगळां री गवाही सही करवा'र मामलो पार लगा दियो। जीत मुद्दई री हुई।