समै सारू लिखेड़ो ही समाज खातर प्रेरक बणै : पंवार
राजस्थानी साहित्य इतिहास मांय कहाणी पेटै पांवडा भरां तो बैजनाथ पंवार रो नांव आपरै सोनल रूप मांय निगै आवै। बैजनाथ पंवार उण बगत राजस्थानी कहाणियां रो सिरजण कर्यो जिण बगत राजस्थानी मांय गिणती रा कहाणीकार हा। पंवार अजै ही लगैटगै ८२ बरस री उमर मांय सक्रिय हैं।
उणां री कहाणियां री पोथी 'नैणां खूट्यो नीर' ,'लाडेसर' अर 'ओळखाण' घणी चरचा मांय रैयी। घणा पुरस्कारां सूं सनमानित पंवार नैं हाल ही 'श्रीसरस्वती सेवा पुरस्कार' मिल्यो है। पेश है उणां सूं ईं मौकै कर्योड़ी युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री बंतळ -
सहारण - आपनैं 'श्रीसरस्वती सेवा साहित्य पुरस्कार' सादर अरपण कर्यो गयो है। मोकळी-मोकळी बधाई।
पंवार - ओ म्हारो सनमान नीं मायड़ भासा रो सनमान है। म्हैं तो अेक निमित हूं। ओ म्हैं म्हारो बड़भाग मानूं । धन्यवाद।
सहारण- इण सनमान रै मोकै सूं जबरो मोकौ ओर के हो सकै है कै राजस्थानी साहित्य अर उण मांय आपरै योगदान पेटै कीं बंतळ करल्यां।
पंवार - आच्छी बात है। आपां अेक कानी अेकला बैठ'र बातां करस्यां तो सुवाद आस्यी।
( अेक अेकांत री जिगा बैठ्यां पछै। )
सहारण- म्हैं सगळा सूं पैली जाणणो चावूं कै आप उण दौर मांय लेखन सरू कर्यो जद राजस्थानी लिखारा गिणती रा हा...।
पंवार- (बिचाळै ही) म्हैं सैंग सूं पैल्यां आपनैं म्हारै साहित्यिक रुझान बाबत बता देवूं , जिण सूं आपनैं अंदाजो होजास्यी अर आप म्हारै सरूवाती दौर री विगत सारू कई सवाल करण सूं बच जास्यो।
सहारण- पछै बात पैली रचना सूं सरू करो।
पंवार- ठीक है। म्हैं रतनगर (हाल जिला-चूरू,राजस्थान) मांय जल्म्यो-जायो। सन १९३७ मांय जद म्हैं पांचवीं क्लास रो पढ़ेसरी हो तद हस्तलिखित पत्रिका मांय 'वर्षा ऋतु' नांव रो अेक लेख छप्यो हो , बा म्हारी पैली रचना ही। उण पाछै लिखणै रो चाव इस्यो चढ्यो कै ना बूझो थे बात।
पढ़ाई पछै रुजगार रै पाण सरदारशहर मांय लाइब्रेरियन बणणो तो म्हारै खातर बहोत चोखो हुयो। घणो साहित्य बठै पढ्यो। बो फायदो म्हनैं अजै ताणी है।
उण दिनां रावत सारस्वत 'मरुवाणी' काढ्ता। उण मांय म्हारी कहाणी 'कातिक महातम' छपी। किशोर कल्पनाकांत रै 'ओळमो' मांय कहाणी 'लाडेसर' ही छपी। दोनूं कहाणी खासी चरचा मांय रैयी।
सहारण- उण बगत राजस्थानी मांय कुण-कुण कहाणीकार सिरैनांव हा ?
पंवार - मुरलीधर व्यास अर नानूराम संस्कर्ता खासा चरचा मांय हा। नृसिंह राजपुरोहित अर अन्नाराम सुदामा ही आपरी लेखणी री धार चमकावै हा।
सहारण- पछै आप किणनैं आपरो आदर्श मानो ?
पंवार- म्हैं सदा ही प्रेमचंद रो मुरीद रैयो हूं। राजस्थानी मांय अन्नाराम सुदामा रो नांव म्हारै चित चढ्योड़ो है।
सहारण- ओर कुण-कुण थानैं कथा मांय चोखा लागै ?
पंवार-विजयदान देथा, श्रीलाल नथमल जोशी, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, डॉ. मनोहर शर्मा, मूलचंद प्राणेश, लक्ष्मीकुमारी चूंडावत आद घणा ही नांव इस्सा है जका री रचनावां पाठकां नैं अेक नुंवै बोध सूं जाणोजाण करै।
सहारण- राजस्थानी कहाणियां आपरै देखतां-देखतां अेक लाम्बो सफर तय कर लियो। आपनैं बी बगत री कहाणी अर आज री कहाणी मांय के फरक लागै?
पंवार - म्हनैं आ बात कैवंता गरब हुवै कै राजस्थानी कहाणी बडी उतावळ सूं आगै बढ़ी है। दूजी भाषावां री तुलना मांय निरखां तो राजस्थानी कहाणी संसार आपरै जबरै रूप मांय दिखै। सरूआती दौर मांय कहाणी मांय कथ्य प्रधान हो जियां म्हारी सरूआती कहाणियां मांय आप देख सको हो , जद कै आज री कहाणियां मांय शिल्प री प्रधानता आगी।
सहारण- आप इण बदळाव नैं किंया देखो ?
पंवार- आ चोखी बात है। म्है मानूं कै बगत अर परिस्थितियां सारू सरूप बदळै। कहाणी रो सरूप ही बदळणो स्वाभाविक हो। समै सारू लिखेड़ो ही समाज खातर प्रेरक बणै। कथ्य, परिवेश अर परिस्थितियां रै अनुरूप राजस्थानी कहाणी चाली, आ ही तो आच्छोपण है। आज समाज मांय उपभोगवाद हावी है, इण बगत आपां पाठकां साम्हीं कोरा पुराणां आदर्श राखां तो बांनैं पाठक कदै ही स्वीकार कोनी करै। जुग अर डोळ सारू बात केवण रो असर ज्यादा हुवै। आप देखो नुंवा कहाणीकार रामेश्वरदयाल श्रीमाली, मालचंद तिवाड़ी, चेतन स्वामी, भरत ओळा, सत्यनारायण सोनी, मदन सैनी , दुर्गेश, श्रीभगवान सैनी अर आप रो नांव लियो जा सकै , उणां री कहाणियंा मांय नुंवै भावबोध अर नुंवै परिवेश नैं उठायो गयो है।
सहारण- आपरी कहाणियां मांय गांवां री समस्यावां नैं ही उठायो गयो है। जद कै शहर ही अेक ठाडी आबादी री ठोड हुवै ?
पंवार- प्राय: लेखक जिस्यो देखै, भोगै अर अनुभव करै बिस्यो ही लिखै। म्हैं जीवण संघर्ष मांय गांव-गांव भटक्यो, गांवां नैं नेड़ै सूं देख्यां। बस ओ ही कारण है कै म्हारी कहाणियां ंमांय शहरी परिवेश कम ही मिलै।
सहारण- आपरी अेक संस्मरणां री पोथी 'जीवंता जागता चितराम' ई छपी ही। संस्मरण रै पेटै आप के कैवणो चावो?
पंवार- संस्मरण भोगेड़ो सांच हुवै। बस उणनैं साहित्यिक रूप दे'र लिखारो पाठक नैं परोसै। 'जीवंता जागता चितराम' मांय म्हारा देखेड़ा अर भोगेड़ा सांच है। संस्मरणा बाबत घणो आप बीकानेर विश्वविद्यालय सूं म्हारै संस्मरणा ऊपरां डॉ. मदन सैनी रै निर्देशन मांय महेश कुमार राजपुरोहित रै लिख्योड़ै लघुशोध प्रबन्ध ' श्री बैजनाथ पंवार के संस्मरण : एक अध्ययन' मांय देख सको हो।
सहारण- आप 'श्रीसरस्वती सेवा पुरस्कार-२००४' जको हाल दियो गयो है, ले'र किस्यो'क अनुभव करो?
पंवार- म्हारो ओ सौभाग रैयो कै पुरस्कार घणा ही मिल्या। बडा-बडा उच्छबां मांय बै अरपण कर्या गया। पण ओ पुरस्कार समारोह म्हारै खातर न्यारो-निरवाळो है। पैली बात तो आ कै इण समारोह मांय राजनेतावां री हाजरी कोनी ही , फगत साहित्यकारां रो आतिथ्य हो । दूजी बात आ कै ओ सगळो समारोह प्रायोजक नरेन्द्र कुमार धानुका री अपणायत सूं भर्योड़ो हो । बै दिल खोल'र सनमान कर्यो। बिना औपचारिकता अर सनमानित हुवण वाळां रै लाडाकोडा सूं कार्यक्रम हुयो। कार्यक्रम प्रायोजकां रै दिल सूं जुडे़़डो हो, बहोत आच्छो लाग्यो ओ पुरस्कार ले'र।
सहारण- आप अबार लेखन मांय कांई कर रैया हो ?
पंवार- अवस्था ही घणी होगी , कीं आंखां री ही पीड़ है। के लिख सकां हां , लिख लियो लिखणो हो जितो। संस्मरणा री दूजी पड़त ही अधखली पड़ी है। बस अब तो अेक इच्छा बाकी रैय री है ।
सहारण- बा के ?
पंवार- राजस्थानी नैं मानता। जे राजस्थानी री मानता देखल्यां तो सातूं न्हाण होज्या। आप नूंवा लोग कमाण संभाळो , म्हारी आसीस आपरै साथै है।
म्हे कार्यक्रम स्थल सूं बहीर हुवण री उतावळ मांय घणी बातां नैं बिचाळै छोड'र उठ खड़्या हुया।