कहाणी - बांझड़ी

रात आधी सूं घणी बीतगी - आठम रो चांद भी आभै में लटकग्यो, पण आज रतनी री आंख्यां में नींद कठै? मन में घणी तालामेली - खाटली में पड़ी तळसंू-मळसूं करै। दिन उगणो घणो ओखो हुयग्यो। उण रो धणी माणको तकादो करण नैं गांवां में गयोड़ो। घर में कोई बीजो जीव नहीं। किण सूं बंतळ करै ? किण रै आगै मन री घुंडी खोलै? रै-रै'र पाड़ोसण रा बोल काळजै मांय सूळ सा खुभै। मन-मन मांही बादळी सी घुटै। जे मन री हबड़ास कीं रै आगै नीसरै तो जी सौरो हुवै-हळको हुवै। उण नैं घणी घणी रीस आपरै परण्योड़ै पर आवै। तीन दिन रो कैयर गया। आज सातवों दिन बिसूंजग्यो। पूठा बावड़्या नीं। इस्यो कांईं तकादो हुयग्यो? पैली तो उणां नैं उधारो माल दे देवै - फेरूं अेक-अेक गा'यक लारै फिरै। कोई दो लाख नेड़ै री बाकी गांवां मांय बखेर राखी है। अर आजकालै तो लोगां री नीयत घणी माड़ी हुयगी है। लेय'र देवणै रो नांव ईज को लेवै नीं। सोनो सो बीज'र स्यावड़ रा निहोरा काढ़ै?
पसवाड़ा फोरतां-फोरतां रतनी आखती हुयगी। मिंदर री आरती सुण'र ऊभी होई। पाणी-पेसाब कर'र, हाथ मूंडो धोयो। जी कीं हळको हुयो। सोच्यो- अब तो लोकल गाड़ी आवण वाळी हैं। इण गाड़ी सूं तो जरूर-जरूर आवैला। मन में सोचती जावै। झाड़ा-बुहारा कर्या। सिनान-संपाड़ा करया। पूजा-पाठ करया। इत्तै में उण रो धणी माणको दरुजै बड़्यो। किंवाड़ां रा खुड़का सुण'र बा पूजाघर सूं बारै आई। धणी नैं देखतांईं उमट्योड़ी बादळी री दाईं फिसगी - आंख्यां सूं ढळक-ढळक करता-मोतीड़ा झरण लागग्या।
'क्यूं कांईं हुयो? कीकर रोई ?' माणक हाथ रा झोळी-झिंडा तिबारी में राखतो अधीर सो हुवंतो बूझ्यो। रतनी डुसका करती-करती ठमी ईज नीं। हिचक्यां बंधगी - बोल कोनी ऊपड़्या।
माणक कीं खिज'र बूझ्यो - छेकड़ कीं बात भी हुवैली? किण सूं कोई कीं बोलचाल कै तकरार हुयगी? कांईं कोई उजाड़-बिगाड़ तो नहीं हुयग्यो - कांईं सिर -माथो तो नहीं दु:खै है - जी में सौरप तो है नीं? कीं बोल तो खरी? कीं कैयां ठा'पड़ै कांईं अबखाई है?
रतनी टसकती-टसकती सुबकती-सुबकती पड़ूत्तर दियो कै काल मिंदर जांवंता आपरै दरुजै आगै ऊभी पाड़ोसन म्हानैं देख'र मूंडो मरोड़ती घर में बड़'र किंवाड़ जड़ लिया। हूं दरुजै आगै हुय'र निसरी तो बा घर में बड़बड़ावती सुणीजी। आज तो दिनुगै पैली बांझड़ी रा दरसण हुयग्या। ठा'नीं दिन कीकर बीतसी? सुण'र म्हारै तो तन-बदन में झाळा-पूळा लागग्या। हूं तो मिंदर गयै बिनां ही पूठी घर आयगी। आखो दिन अर रात घणां ओखा नीसरयाहै। ओळमो देंवती बोली, 'अर थे तगादै जा'र बठैईज जा बैठ्या।'
माणक उण नैं हिंवळास देंवता थकां कैयो कै उगाई री रकम आंवती सी आवै। सात दिनां में बीस हजार रै लगैटगै रिपिया वसूल'र लायो हूं - म्हारो जीवड़ो ईज जाणै है। खैर छोड इण उगाई-पताई री बांता नैं। म्हारी अेक बात सुण। पाड़ोसण जे थानै। बांझड़ी कैयी तो कांई कूड़ बोली? बांझड़ा तो टाबर नीं हुवणै सूं आपां हां ईज। इण में रिसाणां हुवणै री कांई बात?
'पण म्हां सूं नित रोज रा अै बोल - अै अमीणां कीकर सुण्यां-सैया जावै ? इण जीवणै सूं तो मरणो ईज चोखो। दिन-राता काया बळै- मौसा सुणतां-सुणतां डील पर चामड़ी को आवैनीं। खाणो चोखो लागै न-कीं पैरणो। घर मांय आखी बातां रा ठाठ है - किण बात री कोई कमी नीं। पण दिन रात ओ सोच खायां जावै कै आपणै पछै इण रो धणी कुण?'
माणको उणरी बातां नैं घणै ध्यान सूंं सुणै हो - उणां रो पड़ूत्तर तो बो भी नीं दे सकै, पण फेरूं भी बो उणनैं समझावंता थकां कैयो कै टाबर हुवणा अर ना हुवणां अै मिनख रै बूतै री बात नीं - आ निरजोरी बात है। अै तो विधाता रा लेख है। लिख दिया सो तिल घटै न राई बधै। फेरूं भी जतन करणो मिनख रो फरज है। उण रो फळ भगवान रै हाथ है। आपां नैं तो ओलाद हुवण सारू जित्त जतन जाबता करणा हा, कर-कर'र आखता हुयग्या। आपां दोनूं जणां डाक्टरां सूं आप री जांच पड़ताळ करायली - दवायां-ओखदां जितरी बे बताई खा धाप्या। सारा तीरथ, बरत-बड़कूलिया, मिंदर-देवरा कर लिया। डोरा-जंतर-मंतर, जादू-टूणां-टोटका करायै बिनां को रैया नीं। बूझा-आखा जियां ओझा, स्याणा, पंडत, पुजारी, पीर-पैगम्बर बताया करतां-करतां टापरो थोथो कर दियो, पण मनड़ै री वांछा तो को पूरीजी नीं।
सुण'र सिसकारो नाखती रतनीं रुआंसी हुय'र बोली- जे बेटा न सही अेक टींगरी ईज हुय जावती तो बांझड़ी नांव तो मिट जांवतो। अेक'र जे मर्योड़ो टींगर भी कूख फाड़'र आ पड़तो तो म्हारो बांझपणो को गिणीजतो नीं। छोरी हुवो चाहे छोरा। घर आंगण में गुडाळियां चालता किस्याक फूटरा लागै? मां-मां कैय'र जद गळै में आपरा नान्हां-नान्हां, कूळां-कूळां हाथां सूं बांथ घालै तो लुगाई रो जमारो सुफळ हुय जावै। मायड़पणो गरबीजै। मां री जिनगाणी धिन-धिन गिणीजै। मातृत्व मंे ईज नारीत्व रो सफळता है। पण, आपां! तो इण दुनियां में आय'र ओ अणमोलो सुख को भुगत्यो नीं। मां-मां रा बोल सुणणै री लालसा ईज मनमें रैयगी। जिण लुगाई री कूख नीं फाटी- जिण रै हांचळा में दूध नीं पांगर्यो-उण लुगाई रो जीवणो-कांई जीवणो है? उण नैं तो धिरकार ई धिरकार है। कैयर बा गळगळी हुंवती धणी रै बाथ घालली।
माणक उण नैं बुचकारतां थकां उण रो ध्यान छेड़ै करतो ओळमै रै सुरां में बोल्यो कै इयां रोवणो ई चालू राखसी का म्हनैं चाय-पाणी रो भी बूझसी? आखी रात गाड़ी में ऊभो-ऊभो आखतो हुयोड़ो आयो हूं। गाड़ी में बैठण नैं कठै दो आंगळ ठोड़ भी को मिली नीं।
अणमणी सी रतनी हड़बड़ा'र चटकै सी उठी अर आप री भूल जतांवती सी बोली - थे सिनान-संपाड़ा करो। हूं अबार चाय-नास्तो त्यार करू हूं। आ कैय'र बा रसोई में बड़गी। माणको उण री पीठ पर निजरां नाखतो मन में सोच्यो कै बापड़ी कितरी दुखी अर बेबस लुगाई हैं। बो न्हाणघर में नळकै हेठै बैठ्यो तो भी रतनी रा करुणा-दया अर बेबसी रा बोल बिसर नीं सक्यो। कांई करै रतनी। मां बणणै री लालसा किण लुगाई री कोनी? हर लुगाई मां बणणी चावै- आपरी कुख उजाळणी चावै। हर लुगाई रा बेटा-पोतां नैं लाड लडावणो-रमावणो-खिलावणो चावै। सै कोई आपरै घरां में हंसता-मुळकता, किलकारी मारता-राफड़ता-झगड़ता टाबर देखणां चावै। ओ इण दुनियां रो ढंग है। जिण जोड़ा री जिनगानी में अै सुख नहीं आवै, बे निरभागा है।
म्हारै ब्याव नैं पूरा बा'रा बरस बीतग्या। म्हारा मायत पोता-पोता करता सुरग सिधारग्या। बे इण सुख नैं तरसता-तरसता ई चल्या गया। म्हारी ओस्था भी अब पैंतीस रै अड़ै़गड़ै है। अब जे टाबर नीं तो भळै कद? दोगाचिन्ती में उळझेड़ो माणक न्हाणघर सूं बारै आय'र कपड़ा-लत्त पैर्या अर पूजा पाठ कर'र रतनी साथै बंतळ करतो चाय-नास्तो करै।
बो उणनैं हिंवळास देंवता थकां बोल्यो कै रतनी, टाबर हुवणै सारू जितरा जतन-जाबता करणा हा- आपां सै कर धाप्या। अब और कोई बीजा उपाय है तो बता। पीसा लगावणां-भागा-दौड़ी करणी आपणैं बस री बात है। है कोई थारै मगज में नुवों उपाय ? रतनी अेक'र धणी कानी बेबस अर हारी निजरां सूं देख्यो। कीं कैवणो चावै ही, पण बात कंठासूं होठां पर आय'र ठमगी। होठ धूजै लाग्या। बा आंगणो कुचरै लागी।
माणक उण री हिम्मत बधावंतो बोल्यो- जो तूं कैवणो चावै- बे खटकै-निरभै हुय'र कैय। आपणै बंस री बेलड़ी बधावणै सारू जितरा भी जतन हुयसी आपां करांला। है कोई उपाय?
रतनी पगां रै अंगूठां सूं जमीं कुचरती-हेठी आंख्यां कर्यां बोली - हां, है।
कांई हैं? - उतावळो सो हुय'र उणरै मूंडै कानी जोवतो माणको बूझ्यो।
थूक गिटती-होठां पर जीभ फेरती रतनी बोली- उपाय तो सांगोपांग है, पण थारै जंचै जद नीं।
कांई कानी जचै म्हारै? म्हां पर इत्तो अविश्वास कीकर? म्हां पर कांईं भरोसो कोनी?
भरोसो तो घणो ईज है।
भळै?
बात इसी है कै थे कर नहीं सको।
कांईं नहीं कर सकूं। तूं कैवै तो आसमान रा तारा तोड़'र थारै पगां में लाय पटकूं।
पक्काई?
इण में कांई मीन-मेख है।
तो द्यो वाचा। बात नै जरू करती बा बोली।
माणक उणरी हथेळी पर आप रै हाथ नैं जोर सूं पटकतो कैयो- अै वाचा। मरद री जबान कांईं फुरै है?
हां, फुरै है- भळै कैय देवोला कै मरद री जबान अर कुवै रा भूण फुरणै रा ईज हुवै है। हूं बो मरद कोनी।
तो होई बात पक्की?
सो'ळा आनां। तूं इतरा कोल-बचन करा'र बात नैं घुमावै कीकर? गुड़ लपेट्योड़ी सी बात कीकर करै? सीधी बरणाट करती आवण दै। आपणी दो काया-अेक पिराण, फेरूं दुराव-छिपााव क्यूं?
रतनी होठां पर जीभ फेरती बोली कै टाबर तो आपणै नोंवैं महीनै ईज हो सकै पण...।
पण कांई?
प...प..., आपांनैं किणी टाबर री देवी नैं बळि चढ़ावणी पड़ैला।
टाबर री बळि? आंख्यां काढ़तो माणको बूझ्यो कुण कैवै है?
डर्योड़ी सी कीं भेळी-भेळी हुवंती रतनी बोली कै अेक तांतरिक सूं म्हारी बात होई है। बो दस हजार रिपिया लेय'र जंतर-मंतर कर अेक टाबर रो भख देवी नैं दे देसी तो नौ महीनां पूरा हुंवता ईज टाबर हुय जावैला।
सुणतां ईज माणकै री आंख्यां खुली री खुली अर मुंडो बायेड़ो ईज रैयग्यो। बो धूजै लाग्यो। उणरो माथो गरणवै लाग्यो। जे ऊभो हुंवतो तो तड़ाछ खाय'र इस्यो पड़तो कै सै हाडका भांग जांवता।
रतनी रै मन री बात जिण नैं लुकावंंता-छिपावंता केई दिन हुयग्या हा। मूंडै पर आवंता ईज धणी री जो गत होई- देखतां ई बा निरढ़ाळ-निरास हुयगी। टाबर तो घणां छेड़ै रैया-ओ चुड़लै रो सिणगार ही जांवतो लखायो।
छेकड़ तीन दिनां रै रुसणा-मनावणां हुवंता-हुवंता माणको देवी नैं बळि देवण सारू हां भरली। पण, टाबर कुण है? कठै सूं मिलसी?
आ सगळी व्यवस्था बो तांतरिक कर राखी है। बो अर उण रा दो साथी दस हजार में हां भरी है। राजी हुंवता रतनी मुळकी अर धणी कानी घणै प्यार सूं देख्यो।
दो दिन पछै -अमावस-थावर री काळी-पीळी रात। गांव सूं बारै जंगळ रै अेक मिंदर में तांतरिक, उण रा दो संगळिया, पांच बरस रो अेक फूटरो-फर्रो टाबर-देवी रै अनुष्ठान में लाग रैया। धणी-लुगाई हाथ जोड़्यां सारा क्रिया-कळाप गौर सूं देखै।
छेकड़ तांतरिक रै सैन करणै पर दोनूं संगळिया उठ्या- अेक छोरै री गरदन झाली-दूजो तरवार उठाईज ही कै रतनी तिलक-छापा लगायै टाबर पर पसरगी। रणचंडी रो रूप कर'र दकालती बोली-नाठ जावो अठै सूं नीं तो हूं रोळा-बैदा कर'र सारो गांव भेळो कर लेऊंली। स्थिति री नाजुकता अर रतनी रो विकराळ रूप देख'र तांतरिक आपरै दोनूं संगळियां साथै तेतीसा मनायग्यो।
रतनी टाबर नैं बांथां में भर'र बोली कै इस्सै फुटरै-फर्रे टाबर नैं मरवा६र उण री मां री कोख उजाड़-अर म्हारी कूख बधावणी चावूं हूं- म्हनैं सौ-सौ बार धिरकार हैं-हजार-हजार लाणत है। हूं बिना ओलाद रै जिंदगी बसर कर लेवूंली, पण किणी मां री गोद नही उजाड़ूंली। आ कैय'र बा घणै जोर सूं उण टाबर नैं कस'र छाती सूं चेप लियो अर चुम्बा लेय'र उण रा दोनूं गाल लाल कर दिया। माणको अेक पसवाड़ै ऊभो अेकर रतनी कानी देखै हो अर अेकर देवी री मूरत कानी। टाबर कानी देख-देख'र उण री आंख्यां सूं चौसारा चाल पड़्या, जिणांसूं रतनी निहाल हुयगी।