सन् १९५४ री बात है। म्हैं अनूप शहर (तहसील-भादरा) री स्कूल में मास्टर हो। स्कूल में झाड़ू-बुहारी अर पाणी रा घड़िया ल्यावण सारू अेक बामणी दादी ही। बीं रो अेक बेटो बीरूराम ग्राम पंचायत में सैकेटरी रो काम भी कर्या करतो।
स्कूल मे म्हारी अेक निजी अलार्म घड़ी ही। कई बार भादरा जावणो पड़तो तद अलार्म लगा'र सोंवतो। स्कूल रै टेम पर घंटी भी अलार्म घड़ी नैं देख'र ई बजाया करता। ठैसण जावणिया भी गाड़ी रो टेम बूझ लिया करता। बां दिनां आजकाल री दांई हर कोई रै कनैं घड़ी कोनीं हुया करती।
एक दिन स्कूल री छुट्टी रै दिन म्हारी अलार्म घड़ी गायब हुयगी। म्हैं स्कूल रै दोनूं-तीनूं कमरां में देखली-टाबरां नैं बूझ्यो, पण को मिली नीं। म्हारै घणी गिरगिराटी हुई। उजाड़ री समाई भी हुवणी दो'री। बीं बगत बामणी दादी स्कूल री झाड़ू-बुहारी कर'र स्कूल सूं निसरण लागी तो चाणचकै ही अलार्म री घंटी सुणीजी। म्हैं अठीनैं-बठीनैं देख्यो तो कठैई कीं को सूझ्यो नीं। म्हैं घणो ध्यान लगा'र सुण्यो अर देख्यो तो अलार्म घड़ी दादी रै घाघरै में बाजण लाग रैई है। दादी आपरै घाघरै नैं घणोई दाबै पण अलार्म बंद करणी आवै नीं। छेकड़ अलार्म री चाबी खतम हुवणै सूं घंटी भी ढबगी।
म्हनैं अचंभो हुयो अर सागै-सागै हंसी भी आवै। दादी री फोटू देखणै लायक ही। म्हैं बूझ्यो, दादी ! आ बात अयां कीकर हुई?'
दादी नीचै धूण घाल्यां बोली, 'अलमारी में घड़ी पड़ी देख'र म्हारो मन चालग्यो। राम निसरग्यो। घड़ी उठाली, पण लुकावण नैं जगां को लादी नीं, जद घाघरियै रै नाड़ै सूं अलार्म घड़ी बांध'र घाघरै में लटकाली। म्हनैं कांई ठाह इण में कांई बलाय ही, जकी अयां रोळो करसी?'
म्हैं दादी नैं हिवळांस बंधावंतो बोल्यो, 'जा थारै घरै जा। म्हैं आ बात कोई नैं को बताऊंगा नीं।'
दादी आपरै घाघरै रै नाड़ै सूं घड़ी खोल'र म्हनैं संभळायी अर गोडां पर हाथ टेक'र उठी अर होळै-होळै आपरै घर कानी रिगसगी।
अब भी जद-जद घड़ी रै अलार्म देवूं तो दादी वाळी बात अर बीं रै साथै हंसी आयै बिनां को रैवैनीं।
स्कूल मे म्हारी अेक निजी अलार्म घड़ी ही। कई बार भादरा जावणो पड़तो तद अलार्म लगा'र सोंवतो। स्कूल रै टेम पर घंटी भी अलार्म घड़ी नैं देख'र ई बजाया करता। ठैसण जावणिया भी गाड़ी रो टेम बूझ लिया करता। बां दिनां आजकाल री दांई हर कोई रै कनैं घड़ी कोनीं हुया करती।
एक दिन स्कूल री छुट्टी रै दिन म्हारी अलार्म घड़ी गायब हुयगी। म्हैं स्कूल रै दोनूं-तीनूं कमरां में देखली-टाबरां नैं बूझ्यो, पण को मिली नीं। म्हारै घणी गिरगिराटी हुई। उजाड़ री समाई भी हुवणी दो'री। बीं बगत बामणी दादी स्कूल री झाड़ू-बुहारी कर'र स्कूल सूं निसरण लागी तो चाणचकै ही अलार्म री घंटी सुणीजी। म्हैं अठीनैं-बठीनैं देख्यो तो कठैई कीं को सूझ्यो नीं। म्हैं घणो ध्यान लगा'र सुण्यो अर देख्यो तो अलार्म घड़ी दादी रै घाघरै में बाजण लाग रैई है। दादी आपरै घाघरै नैं घणोई दाबै पण अलार्म बंद करणी आवै नीं। छेकड़ अलार्म री चाबी खतम हुवणै सूं घंटी भी ढबगी।
म्हनैं अचंभो हुयो अर सागै-सागै हंसी भी आवै। दादी री फोटू देखणै लायक ही। म्हैं बूझ्यो, दादी ! आ बात अयां कीकर हुई?'
दादी नीचै धूण घाल्यां बोली, 'अलमारी में घड़ी पड़ी देख'र म्हारो मन चालग्यो। राम निसरग्यो। घड़ी उठाली, पण लुकावण नैं जगां को लादी नीं, जद घाघरियै रै नाड़ै सूं अलार्म घड़ी बांध'र घाघरै में लटकाली। म्हनैं कांई ठाह इण में कांई बलाय ही, जकी अयां रोळो करसी?'
म्हैं दादी नैं हिवळांस बंधावंतो बोल्यो, 'जा थारै घरै जा। म्हैं आ बात कोई नैं को बताऊंगा नीं।'
दादी आपरै घाघरै रै नाड़ै सूं घड़ी खोल'र म्हनैं संभळायी अर गोडां पर हाथ टेक'र उठी अर होळै-होळै आपरै घर कानी रिगसगी।
अब भी जद-जद घड़ी रै अलार्म देवूं तो दादी वाळी बात अर बीं रै साथै हंसी आयै बिनां को रैवैनीं।