परिचय

बैजनाथ पंवार

पिता: श्री डूंगरमल पंवार
जन्म तिथि : श्रावण कृष्णा 7, वि.सं. 1981
जन्म स्थान : रतननगर (चूरू)
शिक्षा : इंटर, साहित्य-रत्न

सम्‍प्रति :
सैंतीस वर्ष राजकीय सेवा में विभिन्न पदों पर कार्य करने के पश्चात् सेवानिवृत्त। वर्तमान में साहित्य सूजन, विभिन्न साहित्यिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़ाव।

रुचि :
लगभग 60 वर्षों से प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार-प्रसार। जिला साक्षरता समिति, चूरू के सदस्य। स्कूलों हेतु भवन निर्माण, वृक्षारोपण। छात्राओं हेतु छात्रवृति की व्यवस्था में सतत् संलग्न।

लेखन :
प्रकाशित पुस्तकें :
राजस्थानी:-
  • अकल बिना ऊंट उभाणों,
  • लाडेसर,
  • नैणां खूट्यो नीर,
  • ओळखाण,
  • जीवता जागता चितराम,
  • गदीड़।
हिन्दी :-
  • हिन्दी लगभग दस पुस्तकें।

फुटकर प्रकाशन :-
प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं जिनमें रचनाएं जिनमें रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं-
  • दीपक,
  • मरुवाणी,
  • ओळमों,
  • सैनी मित्र,
  • पारीक,
  • कुरजां,
  • मतवाला,
  • मरुश्री,
  • हरावळ,
  • जलम भोम,
  • जागती जोत,
  • मधुमती,
  • बिणजारो,
  • राजस्थली,
  • लोक बिगुल,
  • माणक,
  • समाज विकास,
  • नैणसी आदि।

उल्लेखनीय :-
डॉ. मदन सैनी (बीकानेर विश्वविद्यालय, बीकानेर) के निर्देशन में महेश कुमार राजपुरोहित द्वारा 'श्री बैजनाथ पंवार के संस्मरण : एक अध्ययन` लघुशोध प्रबंध।

पुरस्कार एवं मान-सम्मान :-
  • श्री विष्णु हरि डालमिया पुरस्कार, राजस्थानी भारती, नई दिल्ली
  • पीथळ पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी-संगम, उदयपुर
  • साहित्य सम्मान एवं पुरस्कार, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
  • सीताराम लाळस सम्मान, महात्मा ज्योतिराव फुले सत्यशोधक संस्थान, जोधपुर
  • पं. बृजमोहन जोशी स्मृति पुरस्कार, द्वारका सेवा निधि ट्रस्ट, जयपुर
  • श्री सरस्वती सेवा पुरस्कार, बजरंगलाल नरेन्द्रकुमार धानुका, फतेहपुर-शेखावाटी
  • श्री कन्हैयालाल सेठिया मायड़ भाषा पुरस्कार, छोटी खाटू
  • डी.आर.लिट् मानद उपाधि, राजस्थानी विकास मंच, जालोर
  • अमृत महोत्सव पर चूरू जनपद के साहित्यकारों, शिक्षाविदों एवं समाजसेवियों द्वारा अभिनंदन ग्रंथ भेंट।
  • लगभग दो दर्जन संस्थाओं से अभिनंदन एवं प्रशस्ति पत्र प्राप्त।
  • दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से लगातार प्रसारण।
  • राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के पूर्व सदस्य एवं पुरस्कारों के निर्णायक।
  • जिला कलेक्टर्स, चूरू द्वारा विभिन्न कार्यों हेतु ६ बार प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कार।
  • लोक शिक्षण समिति, श्रीडूंगरगढ़ की स्थापना अपे्रल, १९५१ ई. में की; जिसके अंतर्गत बाल भारती द्वारा छात्राओंहेतु सेकण्डरी स्कूल संचालित।
  • महाराणा प्रताप विद्यापीठ, श्रीडूंगरगढ़ के संस्थापक एवं आजीवन सदस्य।
  • श्रीडूंगरगढ़ महाविद्यालय के संचालक महेश चेरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक ट्रस्टी।
  • वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा की राजस्थानी पाठ्यक्रम विशेषज्ञ समिति के सदस्य।
‍‍
पता :
वार्ड नं. 22, नटराज होटल के सामने,
धर्मस्तूप के पास,
चूरू-331001

फोन :
01562-253342













प्रकाशित साहित्‍य

राजस्थानी:-
अकल बिना ऊंट उभाणों,
लाडेसर,
नैणां खूट्यो नीर,
ओळखाण,
जीवता जागता चितराम,
गदीड़।
हिन्दी :- हिन्दी लगभग दस पुस्तकें।

एकांकी- कोल रा मोल

पात्र -
हरस - घांघू रो राजकंवर
जीण- हरस री भैण
बाबोसा- हरस-जीण रा बाबोसा-घांघू रा ओधपति। चौहान घंघरान।
माजी- हरस-जीण री मां
भौजान- हरस री जोड़ायत
कुरड़ो- हरस रो साथी
तीजां- कुरड़ै री मां
( कुरड़ै अर हरस रा साथी बेली, पणियार्यां आद-आद )
समै- विक्रम संबत ११ वीं रो आरंभ।
पैलो दरसाव
(जगां- गांव रो गुवाड़, समै-सिंझ्या रो)
(गांव रै गुवाड़ मांय पांच सात टाबर 'ल्हुक-मींचणी' रो ख्याल रमै है। ख्याल-ख्याल में डाईं उतारणै री बात ले'र आपोपरी में कीं राफड़-झगड़ो हुय जावै है।)
कुरडो - (रिसाणो हो'र) हरस! म्हारो डांव उतारै बिनां तूं घरै नहीं जा सकै। हूं थानैं पैलां बै'कार'र कै देवूं हूं। हां, सोच लेई थारो चन्दरमां।
हरस - अब तो भाईड़ा! सिंझ्या हुवणै सूं गैरो अंध्यारो हुग्यो है। कालै आवतां ईज पैलीपोत थारो डाव उतार'र फेरूं दूजो डाव रम्मांला। म्हारा भीड़ी भी अबै घरे जावण री खाथावळ करै है।
कुरड़ो - देख हरसा! आ बात सावळ कोनीं। तूं थारै भीड़ियां नैं ठाम ले। म्हैं भी म्हारला नैं ठामू हूं।
हरस - डाव री आज ही इसी काईं अड़ी है? अब घणो अंध्यारो हुयगो। हूं तो जावूं हूं। मां अर बाबोसा उडीकता हुवैला। आव बाई जीण! घरे चालां। अर थे भी सगळा आप आप रै घरै जावो। कान्दा रोटी खावो। ख्याल खतम। पइसा हजम। (चाल पड़ै।)
कुरड़ो -(उण नैं अडवार दे'र) हूं थानैं कै दियो कै म्हारो डाव चुकायै बिनां हूं थानैं अठै सूं अेक पांवडो भी नहीं हालण द्यूंला। चाहे मां उडीको अर चाहे बाबोसा।
(हरस उणनैं धक्को दे'र जावणो चावै है। कुरड़ो उणरै गंफी घाल'र धरतियां पटकै है।)जीण - अरै बीरा कुरड़ा- ओ कांई करै है। भाई हरसै नैं छोड़ दे। डाव री जे थारै कालै नहीं आज ईज अड़ी है तो हूं थारा डाव चुकास्यूं। कालै नहीं, अब री स्यात- ईं घड़ी। (कैय'र वा हरसै नैं छुडावै है।)
कुरड़ो - (हरसै नैं छोड'र) भैण जीण! म्हनैं थारी बात रो पूरो पतियारो है। जे तूं हामळ भरै है तो चाहे डाव कालै ही चुका देई पण हरसै रो म्हानैं तिल भर भी पतियारो नहीं है। ओ सदा सूं ही राफड़गारो है।
हरस - (आपरै डील री धूड़ झाड़तो उठै है अर कुरड़ै कानीं करड़ी मीट सूं देख'र) कुरड़ा! थारै आईज घणी आंट है तो हूं हणाई थारो डाव उतारस्यूं। (आपरै भीड़िया नैं हंकारै है।)
(उणी समै सामली गळी सूं कुरड़ै री मां तीजां कुरड़ा! कुरड़ा! रो हेलो मारती रोळा-रब्बा करती आवै है।)
तीजां - ओ कांई ख्याल मांड राख्यो है? घरे कोर्ह काम कोनी कांई? ऊंट-भैतां रै दावणां देवणां है अर गायां-भैंस्यां नैं थारो बाप दूवैला कांई? चाल घरै बळ।
कुरड़ो - (बिरगरा'र) मां तूं चाल। हूं ओ डाव खेल'र हणाई'ज आवूं हूं।
तीजां - (रिसाणी हो'र) चालै है का नीं? म्हानैं जाणै कोनी कांई? हूं इसी करूंली जको खा'रै कुत्ता खीर। हूं खेत मांय आखै दिन पचती-खपती आई हूं अर तूं खागड़ री दाई उछळतो-रमतो हांडै है।
कुरड़ो - (हाथ जोड़'र) मां, बस ओ अेक इज डाव है।
तीजां - आयो है डाव रो मनकार्योड़ो।
(तीजां उण रो बुकियो झाळै'र ठरड़ती घरे ले जावै हैं। आखा खिलाड़ी उण री हंसी-मखोल उडावंता आप आपरै घरे जावै है।)
हरस - भैण जीण! आज जे तूं कुरड़ियै बिचाळै नहीं पड़ती तो म्हाटो आपां नैं सोपै तांईं पिदावंतो। तूं कितरी वाल्ही लाडेसर भैण है।
जीण - अर तूं कितरो फूटरा? मेरो कान्ह कंवर सो जामण जायो बीर है।
(दोनूं हंसता मुळकता आप रै घरै जावै है।)
दूजो दरसाव
(ठौड घांघू रो महल। समै - भाखफाट्यां।)
गांव घांघू रा डोकरा अधिपति आपरै गढ़ मांय सज्योड़ै कमरै मांय अेक ढोलियै पर सूत्या है। पसवाड़ै अेक कानीं मूढ़ै पर पीकदान अर दूजी कानीं पाणी री झारी पड़ी है। कंवर हरस दूजै ढोलियै पर आडो हुय रैयो है। दीवट रो मंदो-मंदो च्यानणो कमरै रै अंध्यारै नैं भगावण नैं जूझै है। डोकरा चाण चुकै खांसै है।
हरस - क्यूं बाबोसा! अब जीसो'रो हैं कांई?
(बाबोसा उठणैं री चेस्टा करै है - मंूडै सूं कफ रा डचका नीसरै है। हरस अंगोछै सूं पूंछै है।)
हरस - कफ नीसरणैं सूं छाती क्यूं उरळी होई होसी? बाबोसा! पाणी लाऊं कांई?
बाबोसा - हां, अब कफ नीसरणै सूं सांस की सो'रो आवण लाग्यो है। थोड़ै नूं निवायैै पाणीं सूं कुरळा तो करवा।
(हरसो कुरळा करवा'र अंगोछै सूं मंूडो पूछै है।)
हरस - अब कीं थोड़ा ठीक हो नैं बाबोसा?
बाबोसा - हां लाडी। डील मंे कीं सोर'प बापरी है।
हरस - अब थोड़ी ताळ सोय जावो तो ठीक है।
बाबोसा - बेटा! अब म्हांनैं सोवणां हां जितरा सोय लिया। अब तो सदा नैं सदा सारू इज सोवणो है। मेरा पिराण जावण वाळा है। पण, बेटी जीण में अटक रैया है।
हरस - बाबोसा! थे बाई जीण री राई-रत्ती भी चिंत्या-फिकर मत करो।
बाबोसा - लाडी! इण भोळी-भाळी चिड़कली नैं छोड'र जावंता जी घणो दो'रो है।
हरस - बाबोसा! बाई रो आप इत्तो सोच क्यूं करो हो? हरस पर आप नैं कांई विस्वास कोयनीं?
बाबोसा - थारै पर तो विस्वास-भरोसो घणो इज है बेटा। पण......
हरस - पण, पण कांई बाबोसा?
बाबोसा - म्हनैं था पर तो पूरो पतियारो है पण वा थारी जोड़ायत-पराई जाई कांई थारी म्हारी दांई इण भोळी-ढाळी चिड़कली नैं हेत प्यार दे सकैली?
हरस - क्यूं नहीं? वा अवस मां री दांई बाई नैं हथेळयां पर राखैली।
बाबोसा - हूं सांझ-सवेरै दोनूं बखतां उण नैं हेलो दे'र बुलावंतो। निहोरा-बाड़ी काढ़'र उण नैं अपणै साथै जिमावंतो।
हरस - अब भी, उण री भौजाई आपरी दांई बाई जीण नैं जिमावैली। आप कीं बात रो विचार मतना करो बाबोसा। जीमणै रै बखत, उण नैं कुण याद करैला। उण री भोजाई उण नैं आपरै गोडै कनै बिठा'र जिमावैली-उण री मनवार करैली।
बाबोसा - बा बारै रसोई रै कूंळैं कनैं ऊभी रोवैली। उण भोळी - ढाळी चिड़कली नैं बा पराई जाई कीकर मनावैली? (आंख्यां सूं टळक-टळक आंसूं पड़ै है। हरसो अंगोछै सूं पूंछै है।)
हरस - बाबोसा! आप अन्तकाळ रै समै इण भांत जीदो'रो मत नां करो। राम रो नांव लेवो, हरि नैं सिंवरो।
(बाबोसा री आंख्यां रा कोडिया भूंईज जावै। हंसलो उड जावै है।)
हरस - हाय म्हारा बाबोसा! म्हानैं छोड'र सिध चाल्या ? अब म्हारो कुण धणी ?
(थोड़ी ताळ में घर बा'र रा लोग आ पूगै है।)

तीजो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़)
गढ़ रै अेक कमरै मांय हरसै री बूढ़ीया मां ऊपरला सांस लेवै है। हरसो उण री नाड़ी झाल्यां बैठ्यो है। आड़ोसी-पाड़ोसी बूढ़ी-बडेरी लुगायां अठीनैं-बठीनैं बैठी है। अेक दो लुगायां जीण नैं उण बखत आप रै घरै ले जावै है।
हरसो - मां सा! कांई कीं कैवणों चावो हो?
(मांजी उठणैं खातर टसकै है। हरसो उण री पीठ अर नाड़ रै सहारो लगा'र बैठी करै है।)
हरसो - मां सा! आप रै मन में है तो फरमावो। कीं दान दिखणां! बीजी कांई मन मेें हुवै तो आप हुकम करो। थारो बेटो त्यार ऊभो है।
मांजी - (अठीनैं-बठीनैं फाट्योड़ी निजरां सूं कीं ओळखणै री चेस्टा करै है। हळवां-हळवां...) जीण कठै है? दीसी कोयनी?
हरस - आपरी बेल्यां साथै पाड़ोस्यारै घरे गई है।
मांजी - हरसा बेटा! मेरो जीव जीण खातर डाडर गूंथेला? तीज त्यूंहारा पर कुण उण रै मेहन्दी मांडैला?
हरस - मांजी आप अब उण री फिकर छोड'र आखरी बखत राम रो नांव लिरावोनी।
मांजी - अब कुण उण रा सिंजारा करैला? कुण उणनै। रुस्योड़ी नैं मनावैला। उण नैं बात-बात पर रुसण री घणी बाण है लाडी।
हरस - मंाजी! आप इण बातां सारू अब क्यूं जीव दो'रो करो हो? अै आखा काम जीण री भौजाई करैला।
मांजी - जी मानैं कोनी बेटा! बा पराई जाई क्यूं इतरा काम करैली?
हरस - वा नहीं करैली तो मांजी हूं तो हड़दम हाजर हूं। म्हारी लाडेसर भैनणी जीण रा हूं लाड कोड करूंला।
मांजी - हरसा जे तूं पेटै पाप राखैला तो हूं दरगाह में थारी दामणगीर बणूंली। म्हारी आतमा हरमेस भटकती रैवैली।
हरस - मांजी! थे बाई जीण री रत्ती भर भी चिंत्या-फिकर मत करो। हूं बाई सा सारू सोकीं करूंला।
मांजी - म्हारी जीण नैं अेकली नहीं छोड़ैला। (सांस अटकै है।)
हरस - अै म्हारा आप सूं कोल-बचन है मांजी। उणनैं परणा'र सासरै खिनाऊंला। जद ताईं नहीं परणीजै ली हूं उण रै साथै हूं। थे पूरो भरोसो राखो मांजी- पूरो भरोसो राखो।
(मंाजी निढ़ाळ हुय'र नाड़ गेर देवै है। गळै मांय गयोड़ा सांस बारै नहीं आया। आड़ोसण-पाड़ोसण रोवा कूको मचा देवै है।)
चौथो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़। हरसै रै माइतां रै सुरगवास हुवणै रै पांच-सात बरसां फेरू-समै-दिन उगाळी।)
जीण - हां तो भौजाई! थे म्हनैं किण-किण रै साथै कणां-कणां ओलै-छानैं बतळावंता देख्या?
भौजाई - बाईसा! हूं कूड़ को बोलूं नीं। म्हैं म्हारी आंख्यां सूं तो थानैं किण सूं बंतळ करता को देख्या नीं।
जीण - भळै? कुण थानैं म्हारै बारै में लगावणां-बुझावणां कर्या? कुण म्हारी सोक थानैं मो'सा बोलिया?
भौजाई - बाई सा! अब हूं थानैं किण किण रा नांव गिणाऊं? जिण गळी मांय'र नीसरूं उणी में थारै संगी बेलियां रो चुगरो सुणीजै।
जीण -(रीसां में राती हुवंती) भौजाई! कूड़ मत भाखो। किण रै लगायां-बुझांया किणी बात रो पतियारो मतनां करलीज्यो। लोग तेरी-मेरी करणै अर भाठा-भिड़ावण में घणां घात रग है।
भौजाई - तो हूं जाबक कूड़ी? जकी बातां कानां सुणी, आंखी झूठी? अर थे बाईसा! जाबक खरा?
जीण - भौजाई! सोनै रै काट को लागै नीं। लोगां रो कांईं? वै तो किणी नैं सुखी अर सो'रो को देखणां चावै नीं। म्हारै माइतां रै सुरगवास हुवणै रै पछै, बीरो हरस जितरी रिछपाळ अर खेवट करी है-वा किण नैं सुहावै है।
भौजाई - वा तो ठीक है, पण आटै में तो लूण खटाज्यावै - लूण में आटो कीकर? थोड़ी बहोत कीं सांच हुवै जदी तो उण रै पर पांख्या लाग'र इन्नैं-बिन्नैं उडै।
जीण - हां भौजाई! थारो कैवणों खरो। पण आ दुनियां घणी चालू। वा खावै आपरो अर निंदा करै पराई। आपां दोनवां नैं हंसतां-बोलतां देख'र बानैं घणी अखरै।
भौजाई - थारै भाई नैं भी तो लोग ऊंधी-सूंधी बातां कै'र भंगरावै है नीं।
जीण - म्हारै बीरै हरस नैं कांई भिड़ावै है?
भौजाई - लोग उणां रै बहकारै है कै थारी भैण जीण नैं जुवानी फोड़ा घालै है। बा अरण-बरण रै लफंगा साथै ओलै-छानैं बंतळ करै है।
जीण - (अंचभो करती आंख्यां आडी दोनूं हाथ दे'रं) भाई उण री बातां रो पतियारो कर लियो?
भौजाई - भाई कांई पड़ूत्तर देवै? घर हाण, लोकां हांसी। बिनां मां री बेटी जाण'र वै थानैं कीं कैवै कोनी। कैंवतां संको करै। इणीज कारण इण चुगरै सूं आजकालै वै मन ई मन घणां घुटता रहवै।
जीण - कांई चुगरो?
भौजाई - ओ इज चुगरो कै जीण गांव रै रूळ टींगरा साथै बंतळ करै। थारो भाई भी सोचै कै बींद रै मूंडै जद ल्याळ पड़ै तो जनेती कांई करै?
जीण - (जाड़ पीस'र) बस करो भौजाई। हूं सो'क्यूं जाणगी। थे म्हारै बीरै री आड मे थारै मनड़ै रो काळूंस उजागर करो हो। म्हैं थानैं इण घर मांय फूटी आंख्यां इज को सुहावूं नीं।
भौजाई - हां, बाईसा। दो'रा रैवो चाहे, सुणीजै नीं। इण बदनामी सूं थारा भाई सूक'र खेलरो हुग्या। कुठोड़ लागी अर सुसरो बैद। इन्नैं पड़ै तो कूवो अर बीन्नैं पड़ै तो खाड। बै किण रो मंूडो पकड़ै?
जीण - तो आ बात है? म्हनैं इत्तै दिनां ठा इज को हो नीं।
भौजाई - थानैं ठा'क्यूं हुवै? मौजां माणो हो अर मस्ती करो हो। काया तो घुळ-घुळ'र म्हारी पींजर हुवंती जावै है।
जीण - बस करो भौजाई। अब हद पार मत करीज्यो-सीमा मत उळांघज्यो। जुबान रै लगाम दिरावौ। म्हैं अब और कीं भी नीं सुणणो चावूं। बदनामी रो ओ ठीकरो म्हारै सिर पर?
भौजाई - और किण रै सिर पर? कुचमाद री कोथळी तो थे इज हो।
जीण - (मंूडो बाय'र) म्हैं? म्हैं?
भौजाई - बीजो और कुण?
जीण - (रीस में धूजती, पग पटक'र) तो आ चाली। काठो राखो थारो टापरो।
(जीण रोवंती-डुसका करती तळाव कानीं जावै है। भौजाई भी अेक खाली घड़ो ले'र चालै है। उण रै आगै बीजी पणिहार्या रिगली-टसकोळी बंतळ करती जावै है।)
अेक पणिहारी - आजकालै जीण रो कांई कैवणो? जाणै सारै गांव री जुवानी इण अेकली मांय ही बड़गी।
दूजी पणिहारी - अेहड़ी जोध जुवान बेटी घर में कीकर खटावै? जै आ परण्योड़ी हुवंती तो अब तांई अेक दो टाबरां री मां बण जावंती।
पैली - डावड़ी ! इण नैं कुण परणावै? मां-बाप तो सुरगां सिधारग्या। भाई-भौजाई रै कांई आंट? (सुण'र लारै बगती भौजाई रै तन-बदन में आग-पळीता लाग जावै है। बा पूठी घरै आ'र मुं-माथो ले'र मांचलियै में पड़ जावै है।)

पांचवो दरसाव
(जगां- घांघू रो गढ़। हरसै कीं गांवतरै संू आ'र ऊंट नैं झोक में बांध'र नीरा चारी करै है। पोळी में बड़'र अठीनैं-बठीनैं जोवै है। जीणनैं हेलो दे'र।)
हरस - जीण! ओ भेण जीण! कठै है?
(अपणै आप सूं) उण री भौजाई भी कोनी दीसै? दोनूं कठै बारै गयोड़ी दीखै। सायद पाणी ल्यावण तळाव पर गई हुवैली। (आपरी तरवार अर कमर पेटो, रक्खी आद उतार खूंटी टांगै है। कमरै में अेक कानीं खाटली में पड़ी आप री लुगाई रो ठणकणो सुणीजै है।)
हरस - अरै तूं अठै है? ओ बखत कांई सोवणै रो है - अर तूं रोवै कीकर है? कांई हुयो? सब कुसळ मंगळ तो है नीं। भैण जीण भी को दीसै नीं, कठै गई?
लुगााई - (रीसां मांय सुबकती-सुबकती) कूवै में।
हरस - कूवै में। पण क्यूं?
लुगाई - आपरै जणीतां नैं रोवण नैं।
हरस - तूं कांई बोलै है? म्हारैं कीं समझ में नीं आवै।
(लुगाई हळवां-हळवां उठ'र खाट पर बैठी हुवै है। राती-चुट आंख्यां सूं चौसरा चाल रैया है।)
लुगाई - थारै कांई समझ मांय आवै? थानैं सौ-सौ बार कै दियो कै इण लाडेसर भैण रा हाथ पीळा कर'र धारियै चढ़ावो-नहीं तो आ आपणा मंूडा काळा करावैली। पण थानैं तो गिनरत इज कोनीं।
हरस - थानैं कांई ठा गिनरत कोनीं। ठा नीं कितरै गांवां में गोता खा'र आयो हूं? कोई जोड़पै रो घर-बर मिलै जद नीं।
लुगाई - तो कांई कुंवार कोटड़ो चिणा'र आखी ऊमर आपणी छाती पर इज मूंग दळती रहसी? हूं तो लोग लुगायां री चुगली अर चुगरो सुणतां-सुणतां नाक-नाक आइजगी। म्हारी तो छाती में ढमीकड़ा बंधग्या।
हरस - पण, अब वा है कठै? बता तो सरी?
लुगाई - म्हां सूं राफड़-झगड़ा करती, लड़-झगड़'र ठा नीं कठै गई है।
हरस - थारै सूं गोधम? इसी कांई बात हुयग्यी?
लुगाई - बात कांई? सांझ-सवेरै अेक ही बात। हूं कैयो, बाई सा। आप अब जोध जुवान हुग्या। आपनैं ओपरै छो'रा सूं ओलै-छानैं बंतळ करणी फुटरी बात कोनीं।
हरस - भळे?
लुगाई - भळे कांई? होम करतां हाथ बळै है। सुणतांईं बा तो म्हारै पी'र वाळा नैं बखाणणा सरु कर दिया।
हरस - अर तूं सूुणती रैयी?
लुगाई - हूं कांई उण सूं दूबळी हूं। म्हनैं च्यार सुणाया तो हूं आठ सुणा'र थांरी पीढी उथळ दी।
हरस - दोनूं बराबर होई? थां उण सूं कांईं घाट थोड़ा घालो हो?
लुगाई - म्हारा अमीणा सुणतां ई ठा'नीं कठीनैं टुर भीर होई?
हरसो - तूं चोखीकरी। (कैय'र जीण नैं सोधण जोवै है।)
छठो दरसाव
(जगां- तळाब रो मारग। केई पणिहार्यां रीता घड़ा लियां तळाब कानीं जावै है। केई पाणी भर'र सखी-बेल्यां साथै हंसी ठिठोळी करती पूठी बावड़ै है। केई मिनख ऊंटां पर पाणीं री चौखड लावै है तो बीजा, एवड़ अर गायां भैस्यां नैं पाणी पा'र लावै है। तळाब को रुखाळो हाथ में तासळी लियां पायतण रै मांही गोबर मींगणा चुग-चुग'र बारै न्हाखै है। टाबर पायतण रै बा'रै पड़ी सीलां माथै सिनान सिपाड़ा करै है।)
हरस - (खाथो-खाथो चाल'र दूर जावंती जीण नैं हेलो दे'र) जीण! ओ भैण जीण! थमज्या। थमज्या। .... हूं आवूं हूं। जीण बावड़'र हरस कानी जावै है अर पूठी चाल पड़ै है।)
हरस - (जोर-जोर सूं) जीण सुणीज्यो कोनीं! जीण! हूं कैवूं हूं पूठी घरै बावड़ज्या।
(जीण हरस रै हेलां री अणसुणी कर'र कानां तळै मार'र उतावळी-उतावळी तळाब कानी जावै है।)
हरस - (डीघा-डीघा डग भरतो उणनैं नावड़'र अडवार दे'र साम्ही ऊभो होय जावै है।) अब बोल। कीकर जावसी? कितरा अणमेघा रा हेला दिया। तूं तो गिनारै इज कोनी। चाल घरै पूठी चाल।
(जीण फाट्योड़ी अर काई निजरां सूं हरस कानी जोवै है। कीं बोलणी चावै है, पण गळो भरीज जावै है।)
हरस - म्हारी लाडेसर भैण! तूं इयां घर सूं रूस'र कीं कैयां-सुण्यां बिनां ही कीकर अर कठै भीर हो पड़ी।
जीण - भाई! म्हनैं जावण दे। थे पूठा घरै चल्या जावो।
हरस - भैण! थानैं कठै जाणवद्यूं? अर थानैं साथै लियां बिनां कीकर घरै पूठो बाबड़ू?
जीण - (आंसू टहकावंती, गळगळी होय'र) बीरा! आज जे इण धरती पर जे म्हारी मां हुंवती तो इण भांत कुंवारी बेटी घर सूं कीकर निसरती?
हरस - भैण! जे मां नीं है तो कांई हुयो? थारी भौजाई तो थारै मां सरीखी इज है। अब तो उण नैं ही मां समझणी पड़ैली।
जीण - ठीक है भाई! पण, मां बिनां कुण म्हारो सिर पुचकारैलो। कुण म्हारा आंसूड़ा पूंछलो?
हरस - लाडेसर भैण! ओ थारो बीरो थारो सिर पुचकारैलो- ओ हरस थारो आंसूड़ा पूंछलै। तूं अेकर म्हारी बात सुण'र सांभळ तो सरी। (उण रो सिर पुचकारणो चावै है बा परै सरक जावै है।)
जीण - बीरा म्हानैं आडी मत दे, जाण दे। (हरस रो हाथ परै करै है।) आज म्हारै हिवड़ै में लाय पळीता लागरैया है। आज मां अर बाबोसा री घणी ओळूं आवै है। (हिचक्यां चढ़ै है।)
हरस - (बुचकार'र) भैण !
(हरस रै ही आंसू झरै है बो आंसूं पूंछै है।)
जीण - बस भाई! अब कुण म्हारै मनड़ै री बात पूछै? कुण म्हारै अंतस री पीड़ समझै? कुण म्हारा उळझ्योड़ा केस सुळझावै? आज म्हारी पीड़ री सींवा टूटगी - दु:ख रो दरियाव उफण रो है। म्हारो मारग छोड़ दे बीरा!
हरस - हूं मारग कीकर छोड़द्यूं? हूं थानैं घरै पूठो ले जा'र इज मानूंला।
जीण - बीरा! आज हूं घणी अभागण हूं। म्हारै मारग में आडी मत दे। आज बाबोसा होवंता तो म्हारी अेहड़ी कोजी गत देख'र मून रैवंता? बै म्हानैं हथेळां मांय राखतां। घणो हरख अर कोड सूं चोखो फूटरो घर-बर देख'र म्हनैं परणावंता।
हरस - भैण! बाबोसा रै अै सारा कारज पूरा करूंला। लाडेसर! ओ कांई म्हारो फरज कोयनीं के? हूं थानैं घणै धूमधडाक़ै सूं परणावूंला।
जीण - जाणै समझै जद तो घणां ही फरज है थारा। तूं म्हानैं चोखी चूनड़ी उढ़ाई बीरा।
हरस - चूनड़ी? किसी चूनड़ी?
जीण - हां बीरा! और कांई कैवूं? पण, इण में थारो दोख कोनी। आ तो जुग-जुगां री घणी पुराणी रीत चाली आवै हैं।
हरस - कांई रीत?
जीण - आ इज रीत कै, मरद रो ब्याव हुंवता ही बो लुगाई रो हुय जावै हैं। मां भैण री प्रीत नैं बिसार देवै है।
हरस - म्हारै साथै आ कदै ही नीं होय सकै म्हारी लाडली भैण।
जीणं - हुवंती आई है बीरा। जकी मां आप खुद आलै-गीलै गाभै में सोय'र बेटा-बेट्यां नैं सूखा में सुवावै, जिण बेटै नैं बीस-पच्चीस बरसां तांई अंडे री दांई सेवै, बो लुगाई आवंता ही बीस-पच्चीस दिनां मे ही मां नैं दू'र-दू'र अर छी'र -छी'र करण लाग जावै । हरस - आ नीं होय सकै म्हारी भैण। थारी भौजाई म्हानैं चोखी लागै अर थू खारी।
जीण - आ तो सांपरतै ही होर्यी है बीरा। पण म्हनैं आ तो बता, हूं थारै सूं कांई आधो राज मांग्यो? धन दायजो मांग्यो? भैण-बेटी तो तीज-त्यूंहारां कुड़ती-कांचळी सूं ही राजी, जे बार-त्यंूहार पी'र मंगाव लेवै तो बै आपोआप नैं बड़भागड़ समझै। इणां सूं बती-बता तो खरी बै और कांई चावै?
हरस - म्हारी जामण जायी भैण! जो कीं भी हुयो है, उण नैं बिसार दे। हूं थारी आखी वांछावां नैं संपूर्यूं सूं - थानैं तूठसूं। अेकर तूं म्हारै साथै आपणै घरै तो चाल।
जीण - आपणै घर है कठै बीरा! बो घर तो थारी लुगाई रो है। धन धणी रो, गुवाळियै रै हाथ गे'ड।
हरस- भैण! तूं आ बात म्हानैं मत कै। तूं जाणै कोनीं हूं और भांत रो मिनख हूं। म्हनैं तूं रीसां मत नां दिरावै। (आपरै हाथां रै बटका बोडै है।)
जीण - भायड़ा! म्हनैं तू अब मनावण आयो है जद कै म्है अंतरजामी सूं लौ लगा चुक्यी हूं। हूं अब इण जगती रै आखै जाळ-जंजाळ रै तोड़'र, भाग'र इणां सूं मुगत होय चुकी हूं।
हरस - भैनड़ी! तूं अेकर म्हारी बात तो सुण।
जीण - नां बीरा नां। अब हूं कीं री कीं ंबात नीं सुणुली। अब कीं नीं होय सकै। म्हनैं म्हारै नेहचै सूं कोई नीं डिगा सकै। विधाता रा लेख कुण टाळ सकै हैं? आ तो पगां हेठळी लाव ही, जकी निसरगी। औसर चुकी डुमणी गावै ताळ बेताळ।
हरस - पण छेकड़ बात कांई है? तूं म्हनैं बता तो सरी। आ इतरी दोरप अर आंट कीकर? थारी भौजाई थानै कै ताना मार्या कै मौ'सा बोल्या? कोई करड़ी अर आकरी बात तो नीं बोली? कैयां इज ठा पड़ै। थानैं कांई दु:ख दियो?
जीण - बीरा अब इण बातां सूं कांई हुवै? बीती ताही बिसार दे- आगै री सुध लेही। गई बातां नैं तो घोड़ा ही कोय नावड़ै नीं।
हरस - नीं भैण! थानैं म्हारै गळै री सोगन है। थारी भौजाई जे थानैं सावळ-कावळ कैयी है तो हूं उण रै माजनैं रा टका झाड़ देवूंला। उण री खाल में तुस भरवा न्हाखूंला। बा म्हारी जामण जायी लाडेसर भैण नैं होठं रो फटकारो तो नीं दे सकै। हूं उण री जीभ काढल्यूंला। तूं म्हानै बता तो सरी। हूं उण में इस्सी करू जको खा नैं कुत्ता खीर।
जीण - थारै जे सुणनैं अर जाणणै री घणी गळदांई हुय रैयी है तो सुण। भौजाई म्हानैं उठतां-बैठतां, खावंता-पीवंता, सोवंता-जागतां हरदम गाळ्या ठरकावंता रैवै। तीरिया मारता रैवै।
हरस - जीण! खरी-खरी कैयी। रत्ती भर ही कूड़ मत भाखी। कूड़ सूं म्हानैं घणी रीसां आवै। जीण - हूं कूड़ क्यूं भाखूं? म्हनैं किण रो डर है कांई? होई-होई कैवूं। सूरज भगवान गवाह है। अेकर हूं तळाब पर पाणी भरण नैं गई साथै मोकळी साथण-बेल्यां भी ही।
हरस - अर थारी भौजाई?
जीण - सुण तो सरी। भौजाई भी ला'रै-ला'रै चालै ही। बा म्हनैं सुणा'र अेक साथण नैं कैया कै नखरा तो देखो म्हारी बाईसा रा। कीकर दीदा मटका'र चालै है, जाणै आखै मुळक री जुवानी इण अेकली में ही आ पड़ी।
हरस - हूं ..........।
जीण - हूं कांई? सुण'र म्हारै डील मांय सरणाटो सो होयो। तन-ंबदन में झाळा-पूळा सा लागग्या। म्है बीं बखत ही तळाब मे डूब मरण रा मत्तो उपायो, पण बीरा म्हारा, इण सूं कुळ में कळक लागणै रो डर हो।
हरस - फेर?
जीण - फेर कांई? बीं बखत हूं अेक करड़ो संकळप लियो।
हरस- कांई संकळप?
जीण - इण तळाब की पाळ पर ऊभी होय'र हूं सूरज भगवान नै साक्षी बणा'र म्है अेक सोगन ली।
हरस - (उतावळो बूझ्यो।) कांई सोगन ली?
जीण - हे सूरज देवता! हूं किणी परबत पर जा'र भगवान री तपस्या करूली। भौजाई रै लगायेड़ै कूड़ै कळंक नैं उतार'र उजळी बणूंली।
हरस -जे कीं हुयी घणी माड़ी। भैण तूं उण बातां नै जड़ा-मूळ सूं बिसर्यज्या। आपणै टाबरपणै री बातां नैं चेतै कर अर घरां चाल।
जीण - नहीं, नहीं। अब आ कदै ही नहीं होय सकै। भौजाई जे ठूळां सूं जे म्हारा हाडका भांंग न्हाखती.....जे म्हारी बोटी-बोटी बाढ़'र चील-कांवळां नैं फेंक देवंती तो म्हनैं कोई दु:ख दरद कोनी हो। पण, ओ तो अेक रजपूतणी रै शील पर सीधो घात है। म्हारै सत पर डा'म है। इण नैं हूं कीकर सै सकूं हूं।
हरस - तूं घरै चाल तो सरी। हूं थारै सारू अळगो मिंदर चिणा देस्यूं। तळाब अर बावड़ी खुणवा देस्यूं।
जीण - नहीं म्हारा बीरा! अब कीं नहीं हो सकै। चाहे सूरज भगवान अगूण छोड'र आथूण उगण लाग जावै, भागीरथी गंगा चाहे हिवांळै पर पूठी चढ़ जावै। आंकड़ां रै आमां अर नीमड़ां रा मतीरा लाग सकै है, पण जीण थूक'र चाटणो को जाणै नीं। हरस - जीण! तूं इतरी करड़ी .........कीकर बणगी?
जीण - बीरा म्हारा ! म्हनैं आपणै टाबर पणै री आखी बातां री ओळ्यूं आवै है। उण इतरै तगड़ै लाड-कोड नैं अेक पराई जायी कीकर तोड़ न्हाख्यो ? आ बात म्हारै काळजै में कंाटां री दांई खुभै हैं।
हरस - पराई जायी - कुण है पराई जायी?
जीण - इतरो भोळो-बचकूकर मन बण म्हारा बीरा! तूं जाण-बूझ्तो कानां में कोया लेवै है। पराई जायी है, म्हारी भौजाई -थारी कामणगारी लुगाई। आवंता-आवंता ही इज अेक ही मां रै ओदर मांय लोटणियां भाई-भैणां में अणूतां आंतरा घला दिया। आपां दोनू भाई-भैण अेक ही आंगणियै मांय रम्या। किलकार्यां मारी। अेक ही पालणै हींड्या अर अेक ही थाळी मांय जीम्यां। अै कोई भूलण जोगी बातां है? अेक ही इत हीडै पर उबल्यां मचकायी। हरस - भूलज्या भैण, उण बीती बात्यां नैं अब इण भांत चितारणै सूं कांई लाभ। तूं इतरी निरढ़ाळ मत होवै। ओ थारो जामण जायो बीर अब भी थारै साथै है।
जीण - म्हारै साथै कीकर? आ बात म्हारै हिड़दै ढूकी कोनी।
हरस - हूं भी थारै साथै चाल'र परबत पर तपस्या करसूं।
जीण - (हरस रै मूंडै पर हाथ मेलतां) नां-नां बीरा म्हारा। थानैं इयां करयां कीकर सरै? थे जे तपस्या करणै डूंगरा जावोला तो थारै बदळै कुण राज करैला-कुण पिरजा री देख-भाळ करैला ? थारै लारै भौजाई अेकली झूरैली। थे पूठा घरे चला जावो। नहीं तो आपणो बंस ही खतम हुय जावैलो। अर हूं कुळ खपावणी बाजूंली।
हरस - इण सूं तो कुळ रो नांव घणो उजागर हुवैलौ। मांयतां रो जस बधैलो।
जीण - देख बीरा! हूं भळै कैवूं हूं। तूं पूठो बावड़्ज्या। पिरजा अर भौजाई री पीड़ भी तो सोच।
हरस - ठीक है। हूं थारी बात मान'र पूठो घरे चल्यो जासूं। पण, म्हारी अेक सरत है।
जीण - (उण रै मूंडै कानी जोय'र उतावळ सूं) बा कांई?
हरस - सरत आ इज है कै तूं म्हारै साथै पूठी घरै चाल। थारी भौजाई उडीकती हुवैली।
जीण - नां बीरा! आ तो अेकदम अजोगी बात है।
हरस - तो म्हारो पूठो बावड़णो बी जाबक अजोगो है।
जीण - (निसासो न्हाख'र) बीरा! तरवारां रा घाव भर सकै है, पण बोली रा घाव कदै नीं भर सकै। फाट्योड़ै दूध रै जावण लाग सकै है। पण, फाट्योड़ा मन भळै नहीं मिल सकै।
कांच कटोरा नैण जळ, मोती मानस मन्न।
इतरा तो फाट्य नां मिळै, लाख करो जतन्न।ं
हरस - म्हारी लाडेसर भैण! हूं मां सूं जिका कौल-बचन कर्या हा, म्हैं उणां सूं मुकर नहीं सकूं। मरती बेळा, मां म्हनैं थारी भोळावण देवंता बचन लिया हा। बोली म्हारै डाडर मेें जीव अटक रैयो है। जीण री फिकर कुण करसी? बा किण सूं रूसणा रूसैली? किण नैं मां कैय'र बतळावैली?
जीण - मां और कांई कैयो?
हरस - मां कैयो हो कै हरसा! जे तूं जीण सूं पेटै पाप राखैलो तो म्हारी आत्मा भटकती रैवैली अर हूं दरगाह मे थारी दामणगीर बणूंली। जीण - थे मां नैं कांई पड़ूत्तर दियौ।
हरस - हूं मां नैं पूरो पतियारो करायो कै मां तूं जीण सारू राई-रत्ती भी चिंत्या मत कर। हूं बाई रै खातर कोई काण-कसर नहीं राखूंला।
जीण - बाबोसा भी आपरै अंतकाळ रै बखत कीं फरमायो हुवैला?
हरस - हां भैण, बाबोसा भी आपरै छेकड़लै बखत थारै खातर घणां अणमणा हा। अटकता-भटकतां बै बोल्या कै हूं उण भोळी-ढाळी चिड़कली नैं छोड'र जावूं हूं। अंब कुण उणनैं जिमावैला। जिमणै री बेळा बा रसोई री कूंळै ऊभी कूकैली।
जीण - था बाबोसा नैं कांई भरोसो दिरायो।
हरस - हूं उण नैं घणो भरोसो दिरा'र थ्यावस बंध्यायो कै आप किणी बात रो कळाप मत करो। हूं बाई नैं हथैळी ऊपरां राखूंला। अब हूं बचन नहीं तोड़ सकूं। थानै अेकलड़ी नहीं छोड सकू।
जीण - अेकर भळै सोच ले बीरा! पिरजा अर भौजाई री सोच। आगै आस औलाद री सोच। हरस - अब मन्नै नीं पिरजा रो सोच है अर नीं थारी भौजाई रो। आस -औलाद री हूं कांई सोचूं? म्हनैं तो मांयतां नैं दियोड़ा बचनां री याद है। अब खाली मौत इज आपां नै अळगा कर सकै। थानैं जे इण भांत अेकली छोड'र घरै पूठो बावड़ज्यावूं तो सुरगां में मांयतां नैं कांई मुंडो दिखावूंला। जीण - तो पूठो नहीं जावणो है ओ ही छेहलो दिरढ़ विचार है? हरस - सापरूसां रा अेक ही बचन है। हूं अपणै काल पर। आव चालां आपां दोनूं परबतां पर जाय'र तपस्या करस्या।
(दोनूं भैण-भाई खाथा-खाथा चाल'र दूर परबत री चोटी पर चढ़ता दिसै।)
टिप्पणी - जिला सीकर मांय रैवा सांगा सूं दिखणादै कानीं आयबल गिरि माळा री उपत्यकाम मे ंपरबतां रै शिखरां पर अेक कानी हरस अर दूजी कानी जीण री तपस्या लीन मूरत्यां है। शेखावाटी छेतर मांय जीण माता जी री घणी मानता है। बरस में दो बार चेत अर आसोज में जीण माता रा मेळा भरीजै, जिणां में लाखूं सरधालू भगतां री भीड़ हुवै। जात-झड़ूला अर बीजी मानतावां सारू मारवाड़, अर कलकता, बम्बई अर दूजी ठौड़ा सूं जात देवण नैं आवै।)

कहाणी- होम करतां हाथ

सुखजी चौधरी गांव पंचायत सिरदारपुरा रा उपसिरैपंच। माट अर रुतबै वाळा मिनख। घर में सरतरिया। घर-घिराणी अर बेटा-बहू हाल हुक्म में चालणियां। चोखळै रा मानीजता चातर मिनख। दस पांच दिनां सूं ऊंट गाडै पर ठूंठिया लाद'र सहर में बेचण जावै नै पूठा आवंता घर-गिरस्थी री चाईजती चीजां-बस्तां ले आवै। गिरस्थी रो गाडो ठाठ सूं गुड़कै।
अेक दिन मुंह अंध्यारै ठूंठिया रा गाडो भर'र सहर जावै हा। आप ऊंट पर इकलासियै बैठ्या रागळी करै। ऊंट उगाळी सारतो आप रै मौवै चालै। सहर सूं कोसेक पैलां कुंडियै नेड़ै पूग्या हुवैला क्े मारग सूं आथूणै पासै कीं लुगाई री दब्योड़ी सी चिरळी सुणीजी। सुखजी कान मांड'र ध्यान दियो तो सुणीज्यो कै थारी काळती गाय हूं। अरै दुस्टी म्हनैं छोड़द्यो रै। ओरै...बारै....कोई भागो रै.....बचावोरै। अै कसाई म्हारी आबरू.....ओरै.....
सुखजी आखी बात समझग्या। झट ऊंट सूं कूद'र मो'री खेजड़ी रै बांधी अर लाठी लेय'र भाग्या। दूर सूं ही दकाल मारी - अरै हूं आयो- हणांई आयो। अरै नालायको पग मांडो। ऊभा रैवो। थारो बाप आवै है। दकाल मारतो गैलै बगतानैं हेला मारता अवाज रै सहारै दो तीन खेत पार कर'र धोरै चढ्या तो कीं धुंधळी-धुंधळी सी दो छियां सी भागती दिखी। बै ललकारता उणां रै लारै भाग्या। रीसाणा हुय'र दकाल मारी कै भाग्या कठै भी जाण नहीं देऊंला। बिल में बड़्योड़ा नैं भी काढ़ लाऊंला। अब तांईं सूरज उगाळी हुयगी ही। भागता-नाठतां दोनूं जणा आपोपरी में बतळावण करी। ओ तो अेकलोईज है। आपां दो जणा। दो तो माटी रा ईज बुरा। आव साळै नैं कूट नाखां। बै सुखजी रो मुकाबलो करण सारू पूठा बावड़्या। अेक बोल्यो - तूं बीरो हिमायत करण नैं आयो है कांई ? सुखजी सैंठा जुवान हा। ताचक'र अेक जणै री कनपटी रै हेठै इसी लाठी फटकारी कै बो गुचळकी खा'र धूळ चाटै लाग्यो। लाठी फेंक'र फुरती सूं उछळ'र दूजै रै गंफी धाल'र भुंवाय'र धरती पर पटक'र छाती पर गोडा टेक'र मुक्कां सूं मारतां-मारतां थोबड़ो सुजा दियो। नीचै पड़्यो जुवान हाथ जोड़तो बिरगरा'र बोल्यो, बंदा, आज-आज छोड़ दै। भळै लुगाई जात कानी भूल'र भी नीं झांकू। आज सूं तीन तलाक। म्हारो राम निसरग्यो। तेरो पग झालूं हूं।
सुखजी गरज्या। बींरी जट झाल'र अेक खेजड़ी हेटै लेयग्या। सिर रो पोतियो खोल'र उण रा हाथ-पग भेळा कर'र खेजड़ी सूं जरू कर दिया। भळै मगर्यां पर गदीड़ मारता बोल्या, 'हरामजादा, गांव री भाण-बेटियां पर जुल्म करतां लाज को आवै नीं। मरज्या ढकणी में नाक डुबो'र।' यूं कैय'र घणी नफरत सूं उण रै मुंह पर थूक्यो। फेरूं दकाल मारता बूझ्यो, 'कुण है बो तेरै साथै तेरो बाप? कठै रा हो थे? साची बता नहीं तो खेजड़ी रै भिड़ा'र सिर फोड़ नाखूंला।' सुखजी रो बिकराळ अर बिडरूप देख'र जुवान री जीभ ताळवै रै चिपगी। बींनैं बोली को आई नीं। सुखजी जट झाल'र भळै बूझ्यो, 'मेरी बात रो पड़ूत्तर को दियो नीं।'
बो रीरांवतो सो बोल्यो, 'म्हे सहर रा हां। मेरो नाम मूंगलो अर बींरो स्यामलो है। दोनूं भायला हां। अठीनै कीं गांवड़ियां में खाजरू खरीदण नैं जावै हा। इण छोरियां नैं देख'र म्हारी नीत बिगड़गी। म्हारो राम नीसरग्यो। अब चाहे मारो अर छोड़ो। थारी काळती गाय हूं।'
सुखजी उणरै दो धोळ जमावंता स्यामलै कानी चाल्या। देखण नैं-मरै है कै जीवै है। चालतां-चालतां उणरी निजर घास री बगर कानी पड़ी। च्यार-पांच छोरियां दापळी पड़ी। सगळी थरथर धूजै। सुखजी बूझ्यो,'बायल्यो! थे अठै कीकर आई? कुणसै गांव री हो? अेक छोरी कूकती-कूकती सुबकियां चढ्योड़ी बोली कै म्हे सगळी सहर सूं छाणा लकड़ी चुगण नैं आई ही। अठै दो मोट्यार म्हारी बेली तीजां बाई नैं आडी पटक ली।' कैय'र छोरी मूंडै में ओढ़णियो दाब'र आंख्यां मींचली। भळै बा गोडां में सिर दे'र आरड़ै चढ़गी। होठां सूं पूरा बोल को नीसर्या नीं।
सुखजी रीसाणां हुय'र बूझ्यो, 'कठै है बा तीजां ?' तीजां री छोटी भैण हाथ सूं इसारो करती हळवां सी कैयो कै बा टापली री ओलै पड़ी है। सुण'र सुखजी रै अेक चढ़ै अर अेक उतरै। बै खाता-खाता टापली कानीं चाल्या। दूजोड़ो जुवान जिणरै लाठी री मारी ही बिचाळै पड़्यो सिसकै हो। बे बींनैं छोड'र टापी कानी गया। निजारो देख'र धोळा-धप्प हुयग्या। छोरी चेताचूक पड़ी ही। गाबलिया लीरम लीर। उघाड़ी-पघाड़ी। डील लोही झराण। मुंह में पूर दाब्योड़ो। सुखजी सूं देख्यो को गयोनीं। बे पूट फेर'र ऊभा हुयग्या।
सैम-गैम ऊभा सुखजी लुगाई जात री दुरदसा देख'र आकळ-बाकळ हुयोड़ा मन मांय विचार करै- विधाता, तूं लुगाई री जूंण क्यूं बणाई ? अर बणाई तो इत्ती नाजुक अर दूबळी क्यूं ? बां री रीस रा थाग नीं। रीसाणां हुय'र पूठा भाग्या। स्यामलै अर मूंगलै रै भळै ठोकर ठरकाई। बां नैं छोड भळै छोरियां कानी आ'र बोल्या, 'बेटी, थे अब डरो मत। हूं अब इण दोनूं दुस्टां रो काळ आयग्यो हूं। थे जा'र उण थारी साथण नैं थारा ओढ़णियां उढ़ाओ। बा नागी-बूची अचेत पड़ी है। हूं जा'र मारग पर ऊभो म्हारो ऊंट गाडो लेय'र आऊं हूं। इण नैं सहर री असपताळ ले चालस्यां। थे डरो मत, अब अै हरामी कुत्ता कीं नहीं कर सकै। कैय'र बै गाडै कानी चाल्या। छोरियां डरती-डरती तीजां कनैं आई। बींरी दुरदसा देख'र सगळी जोर-जोर सूं रोवै-कूकै लागी। आपरा ओढ़णियां उतार बीं रो उघाड़ो डील ढक्यो- पूर सूं लोही पूंछ्यो। बीं नैं चेतो करावण सारू घणी घोथळी, पण बा मुड़दै री दांई अचेत पड़ी रैयी। अब तांईं सूरज घणो ऊंचो चढ़ग्यो हो। मारग बैंवतै चार जुवानां नैं बुला'र सुखजी गाडो खिणा'र तीजां कनै ल्याया। रोंवती-कूकती छोरियां तीजकी नैं गाडै में सुवाण दीनी। सुखजी दो जुवानां नैं समझा'र उण दुस्टां री रुखाळी सारू छोड़्या अर दो जुवानां नैं आपरै साथै लिया। अेक छोरी तीजकी री भैण आपरी साथळ पर तीजकी रो सिर टिका लियो। दूजी छोर्यां आपरी ओढ्ण्यां रै पलां सूं बींनैं पून घालै।
सुखजी ऊंट नैं टिचकार्यो। खाथो-खाथो टोर'र पुलिस-थाणै पूग'र थाणादार नैं सारी हकीकत बताई। रपट दरज करणै रो कैयो। थाणादार अेक'र तो पुलसिया मूड में नां-नूं करी, पण सुखजी दबण वाळा कोनी हा। छेकड़ रोही में पड़या कुमाणसां नैं गिरफ्तार करणै सारू दो सिपाहियां नैं भेज्या अर तीजकी रो केस अस्पताळ में रैफर कर दियो।
अस्पताळ पूग'र सुखजी लेडी डाक्टर सूं मिल'र तीजां नैं भरती कराई। नरसां हाथूंहाथ उण नैं डाक्टर री सलाह पर दवाई पाणी देय'र होस में लावण रा जतन कर्या। सुखजी सगळी छोरियां नैं आप-आपरै घरां खिनाई। तीजां रै मायतां नैं बुलाया। इतरै में पुलिस मंूगलै अर स्यामलै नैं गिरफ्तार कर ल्याई। स्यामलो बेहोस हो। अस्पताळ में भरती कर लियो गयो। सिपाही मूंगलै अर सुखजी नैं थाणैं में ल्याया। इतरै में अस्पताळ सूं थाणै में फोन आयो कै अबार बलात्कार रै केस में जिण मुलजिम नैं भरती करायो हो उण रो इंतकाळ हुयग्यो है।
थाणैं में मूंगळो आप रै बयानां में अपणै आपनै बेकसूर बतावंता थकां तीजकी साथै स्यामलै पर जबरजिंना रो आरोप लगायो अर सुखजी पर स्यामलै नैं मारण रो। थाणैदार सुखजी पर ३०२ रो केस बणा'र बां नैं हवालात में ठोक दिया।
आखै सहर में-तीजकी साथै हुयोड़ै कुकरम अर स्यामलै री मौत रो हाको लाय री दाईं फैलग्यो। सहर री आखी राजनैतिक पारट्यां आप-आपरी गोट्यां फिट करणै में लागगी। दरअसल न तो किणी नैं तीजकी रै साथै हुयोड़ै हादसै री पीड़ ही, न स्यामलै री मोत रो गम।
पुलिस जांच पड़ताल कर'र तीजकी रै मायतां रो पतो लियो। बा सहर रै ऊंचावै बास रै हुणतैजी पहलवान री बेटी है। परणी पाती। पाड़ोसी गांव हरखासर में बीं रो सासरो है। पुलिस दोनूं परिवारां नैं बुला लिया। पण कोई सो न तो उण री दवाई पाणी री हां करी अर न आप रै घरै ले ज्यावण री। अब आ म्हारै कांई काम री कैय'र परैदूर नटग्या। म्हारै आखै कड़ूम्बै में दाग लगा दियो। कूवै मे पड़ो चाहे खाड में। चाहे कठै मरो-खपो। कैय'र पीहर अर सासरै वाळा आप आपरै घरै टुर भीर पड़्या। किण ही समाज-सेवी रै सहयोग सूं अस्पताळ में तीजकी री दवाई पाणी हुवंती रैई। पांच-सात दिनां री बेहोसी रै बाद बीं नैं चेतो हुयो। बा पुलिस नैं आपरै बयानां में बतायो कै म्हारै घणी बात तो याद कोनी, पण दो जणा जद म्हांसूं बाथेड़ो कर'र म्हनैं जमीं पर आडी पटक'र म्हांसूं आपरो काळो मूंडो कर रैया हा जद बाबोजी री दकाल म्हारै कानां में पड़ी कै पग मांडो, हूं अबही आयो। भळै कांई हुयो ठा'नीं।
पुलिस सुखजी पर ३०२ रो अर मूंगलै पर ३७६ रो केस बणा'र कोरट में चलाण पेस कर दियो। सुखजी रा भाई-परसंगी जमानत सारू घणी कोसीसां करी, पण जमानत को हुई नीं। मूंगलो मुचळका'र जमानत पर छूट'र आप रै घरां आयग्यो।
जेळ में सुखजी सोवै तो नींदां में बा नैं तीजकी री चिरळाट सुणीजै। बीं रो लोही झराण डील लीरम-लीर पूर अर मुंह में ठूस्योड़ो पूर साफ लखावै। गूंडा रो कुकरम चेतै आवंता ई उणांरै मुंह में खरांस आ ज्यावै। मुट्ठी भींचीजै-जाड़ पीसीजै। पण जोर कांई। सेर पींजड़ै में बंद। जे बारै हुवै तो अब ताईं मूंगलो धरती पर जींवंतो फिरै?
जेळ मे बां नैं ठा पड़ी कै तीजकी हालताईं अस्पताळ में ईज है। अब डील में कीं सावळ है। पण, बां नैं आ भी जाणकारी मिली कै अस्पताळ वाळा उण नैं छुट्टी देवणी चावै, पण न तो पीरै वाळा अर न सासरै वाळा, कोई भी उणनैं अंगेजण नैं त्यार नीं। दिन रात उणरो बेबस चेहरो लहुलहान डील सुखजी री आंख्यां आगै फिरतो रैवै। बे मन में घणा पिछतावै कै जे हूं घड़ी स्यात पैली पूग जांवतो तो बे दुस्ट भेड़िया उण भोळी-ढाळी गऊ नैं को फंफेड़ता नीं। बापड़ी तीजां रो कांई दोस? सूधी-भींडळी गाय री दाई जाबक निरदोस। लुगाई री जात-अबळा। आप री इज्जत सारू उण दुस्टा सूं घणी ई जूझी-लड़ी-झगड़ी। रोळो-रप्पो भी कर्यो पण, दो दो कामी-कुत्ता-मोथां रै आगै बापड़ी निरबळ लुगाई रो कांई जोर?
तीजां अस्पताळ मे पड़ी-पड़ी काळूंठगी। उणरै साथै जको हादसो हुयो याद कर'र बा ओजूं ई थरथर धूजण लाग ज्यावै। अब बीं रै डील रा घाव भरीज'र सूखग्या पण, मांयलै हिवड़ै रै घोबां री ओखद कुणसै डाक्टर कनैं? अब बा आप रै बैड सूं हेठै उतर'र कीं टुरै-फिरै भी लागी।
बा आप रै बैड री पाड़ोसण नैं बार-बार कैवै कै मेरी मां नैं अेकर बुलवादे। पाड़ोसण पड़ूत्तर दियो कै थारी मां अर सासू अठै दोनूं लिख'र दे दियो कै म्हे इण नैं झालण नैं कतै त्यार नहीं हां। सुणता ही बा गोडां में सिर देय'र इत्ती जोर सूं कूकी कै अस्पताळ रा आखा करमचारी भेळा हुयग्या। पण इण नैं कुण बुचकारै, कुण हिंवळास बंधावै? सागी जामण ईज जद नटगी तो दूजो कुण धीरज बंधावै? बापड़ी लुगाई री जात।
अेक दिन सुखजी आपरै गांव समाचार करवा'र जेळ में आपरी जोड़ायत अर मो'बी बेटै नैं बुलाया। जेलर री आग्या सूं जद बात हुवण लागी तो बेटो आंख्यां सूं आंसूं ढळकांवतो बोल्यो, 'बाबा! थानैं जेळ में देख'र म्हारी काया घणी बळै, पण म्हारो जोर नहीं चालै। म्हे हाईकोरट ताईं थारी जमानत सारू फिर लिया पण बठै भी दरखास्त खारज हुयगी।'
लुगाई तो बां नैं सींखचां में देखतां ईज डुसका भरण लागगी। बोली कै म्है किण रा काळा चाब्या हा? आज म्हानैं ओ दिन देखणो पड़्यो। सुखजी दोनूं मां-बेटां नैं धीरज बंधावंता बोल्या कै म्हारो जेळ में कांई बीगड़ै- हूं किणरी चोरी कोनी करी, जारी कोनी करी। अेक निरदोस गऊ नैं बचावण सारू किणी दुस्ट रो कतल भी कर्यो जावै तो बो पाप कोनी बाजै। हूं आज थानैं घणै काम सूं बुलाया हूं। म्हारी बात मानोला?
मां-बेटा अेकै साथै बोल्या, 'म्हे थारी बात कद कोनी मानंा- म्हे ईज क्यूं आखो चोखळो थारी बात आदरै। थे हुक्म फरमावो तो सरी।'
सुखजी,'थे अस्पताळ में तीजां नैं तो देखी हुवैली?'
दोनूं, 'हां, अस्पताळ अर कोरट मे पेसी रै टैम बरोबर देखां हां। कोरट में बीं रा बयान भी सुण्या है। तीजां आपनैं तो बाप सूं भी इधको मानै है।'
सुण'र सुखजी मन में हरखीजतो बोल्यो- बेटा, जलमभौम, धरम अर तिरिया जात पर ओड़ी आवै जद मरद रो कांई फरज बणै?
बेटो- बाबा! आ बात तो आप म्हानैं टाबरपणैं सूं ही सिखांवता आया हो कै इण तीनुवां में सूं किणी पर ही संकट पड़ै तो पिराणां री बळी देय'र भी उण री रुखाळी करणी चाहिजै।
सुखजी- तो बेटा! थारै सारू ओ औसर आ चुक्यो है। फरज निभावण रो अैड़ो सोनहलो ओसर भळै कद आवैलो?
बेटो- बाबा! थे असली-सागी बात कैवो नीं, अै कांईं आड्यां आडो हो? हूं आप रो अंस हूं। आपरी आग्या नैं कद लोपी?
सुखजी थूक गिटता सा हळवां-हळवां बोल्या-बेटा! तीजां अस्पताळ में पड़ी है। बीं'रा कोई रिस्तेदार बीं नैं आपरै घरां लेजावण वाळा नीं है। आखा रिस्तेदार बीं सूं घिरणा करै है। बीं नैं अब अपणायत अर हिंवळास री जरूरत है। बेटा, बा म्हारी धरम री बेटी अर थारी धरम री भैण है। बीं नैं आज ही अस्पताळ सूं लेजा' आपणै घरां भैण-बेटी री दाईं पाळो-पोखो।
बाप रा बैण सुणतां ई बेटो आपरी मां कानी जोयो। लुगाई आपरै धणी कानी सुवालिया निजर सूं देख्यो।
'क्यूं बोल्या कोनी?' सुखजी उणमणां हुय'र बूझ्यो।
'कांई बोलां बाबा! जद बीं'रा मायत अर सासरै वाळा ही त्यागदी तो भळै आपां कीकर अंगेजा?'
'तो बा अस्पताळ सूं छुट्टी करतां ही सड़कां पर टुकड़ा मांगती फिरसी? लूचा लफंगा रा कुबोलताना सुणती रैयसी? इण हादसै में बीं रो कांई दोस? रावण आगै सीता रो-कीचक आगै द्रोपदी अर इंदर साम्ही अहल्या रो कद जोर चाल्यो? बापड़ी दुरबळ लुगाया!'
बेटो- अै आखी बातां तो खरी पण, जगती आपां नैं कांई कैवैली?
सुखजी- बेटा! जगती तो हरदम जगती ईज रैवै है। हाडबारी जीभ च्यारूंमेर फिरै। अेक बापड़ी सतायोड़ी-भीखै री मारी दुखियारी लुगाई नैं सरण देवणो कितरो पु'न अर सेवा रो काम है बेटा। कांईं बींनैं सरण देवणो माड़ो अर को'जो काम है? आज जे आपणी भाण-बेटी री इण तरै दुरगत हुवंती तो आपां कांई करता ? बीं नैं घर में राखणो कांईं पाप है?
बेटो- आ कुण कैवै है?
सुखजी- तो बेटा! आज सूं बा थारी धरम री भैण है। बीं नैं अस्पताळ सूं घरै लेय ज्यावो। बीं री सेवा-चाकरी करो। किणी दुखिया अर बेसहारै री सेवा रै बरोबर कोई दूजो धरम नहीं है। इण सूं मिनख जमारो ऊजळै है-ओपै है।
दोनूं मां-बेटा रै सुखजी री बात हाडूहाड जचगी। बे अस्पताळ सूं जरूरी लिखापढ़ी करा'र घणै मान सूं तीजां नैं आपरै घरां लेयग्या। सागण बेटी-मां जायी भैण र दांईं बीं री सेवा करै।
सुखजी जेळ में पड़्या कोरट री पेस्यां भुगतै। मुकदमैं रो फेसलो ठा नहीं कद हुवै। केई लोगां री मौत तो पेस्यां-पेस्यां में ईज हुय ज्यावै-चाहै बे कितरा ही निरदोस क्यूं हुवै नी। सुखजी नैं आपरै फेसलै रो नेहचो है, आपरै बयानां में बे खुद स्यामलै री कतल हंकार है। बां रो जी घणो सौरो अर राजी है। अब बां नैं जेळ-जेळ नहीं लागै। बे टेमसिर आपरी माळा-मिणियो करै। मन में विचार कर'र घणा हरखीजै कै कोरट रै फेसलै मंे घणी सूं घणी ऊमर कैद हुवैली। इण में कांईं हरज है? अेक अबला रो कल्याण करतां जे पिराण भी त्यागणा पड़ै तो सापुरसां री जिनगाणी धन्य है। बां रो जलम लेवणो सारथक है-बां रै पिता नैं लखदाद है।
महीनैं बीस दिन सूं कोरट री तारीख पेसी पर तीजां भी आपरै धरम रै बाप रा दरसण कर निहाल हो ज्यावै। बा सांचै मन सूं बांरै जेळ सूं छूटणै री अरदास करै।
लोगड़ा बातां करै- देखो सुखजी मंे कांईं हुई? परायै दु:ख दूबळा घणां। होम करतां हाथ बळै।

कहाणी - बांझड़ी

रात आधी सूं घणी बीतगी - आठम रो चांद भी आभै में लटकग्यो, पण आज रतनी री आंख्यां में नींद कठै? मन में घणी तालामेली - खाटली में पड़ी तळसंू-मळसूं करै। दिन उगणो घणो ओखो हुयग्यो। उण रो धणी माणको तकादो करण नैं गांवां में गयोड़ो। घर में कोई बीजो जीव नहीं। किण सूं बंतळ करै ? किण रै आगै मन री घुंडी खोलै? रै-रै'र पाड़ोसण रा बोल काळजै मांय सूळ सा खुभै। मन-मन मांही बादळी सी घुटै। जे मन री हबड़ास कीं रै आगै नीसरै तो जी सौरो हुवै-हळको हुवै। उण नैं घणी घणी रीस आपरै परण्योड़ै पर आवै। तीन दिन रो कैयर गया। आज सातवों दिन बिसूंजग्यो। पूठा बावड़्या नीं। इस्यो कांईं तकादो हुयग्यो? पैली तो उणां नैं उधारो माल दे देवै - फेरूं अेक-अेक गा'यक लारै फिरै। कोई दो लाख नेड़ै री बाकी गांवां मांय बखेर राखी है। अर आजकालै तो लोगां री नीयत घणी माड़ी हुयगी है। लेय'र देवणै रो नांव ईज को लेवै नीं। सोनो सो बीज'र स्यावड़ रा निहोरा काढ़ै?
पसवाड़ा फोरतां-फोरतां रतनी आखती हुयगी। मिंदर री आरती सुण'र ऊभी होई। पाणी-पेसाब कर'र, हाथ मूंडो धोयो। जी कीं हळको हुयो। सोच्यो- अब तो लोकल गाड़ी आवण वाळी हैं। इण गाड़ी सूं तो जरूर-जरूर आवैला। मन में सोचती जावै। झाड़ा-बुहारा कर्या। सिनान-संपाड़ा करया। पूजा-पाठ करया। इत्तै में उण रो धणी माणको दरुजै बड़्यो। किंवाड़ां रा खुड़का सुण'र बा पूजाघर सूं बारै आई। धणी नैं देखतांईं उमट्योड़ी बादळी री दाईं फिसगी - आंख्यां सूं ढळक-ढळक करता-मोतीड़ा झरण लागग्या।
'क्यूं कांईं हुयो? कीकर रोई ?' माणक हाथ रा झोळी-झिंडा तिबारी में राखतो अधीर सो हुवंतो बूझ्यो। रतनी डुसका करती-करती ठमी ईज नीं। हिचक्यां बंधगी - बोल कोनी ऊपड़्या।
माणक कीं खिज'र बूझ्यो - छेकड़ कीं बात भी हुवैली? किण सूं कोई कीं बोलचाल कै तकरार हुयगी? कांईं कोई उजाड़-बिगाड़ तो नहीं हुयग्यो - कांईं सिर -माथो तो नहीं दु:खै है - जी में सौरप तो है नीं? कीं बोल तो खरी? कीं कैयां ठा'पड़ै कांईं अबखाई है?
रतनी टसकती-टसकती सुबकती-सुबकती पड़ूत्तर दियो कै काल मिंदर जांवंता आपरै दरुजै आगै ऊभी पाड़ोसन म्हानैं देख'र मूंडो मरोड़ती घर में बड़'र किंवाड़ जड़ लिया। हूं दरुजै आगै हुय'र निसरी तो बा घर में बड़बड़ावती सुणीजी। आज तो दिनुगै पैली बांझड़ी रा दरसण हुयग्या। ठा'नीं दिन कीकर बीतसी? सुण'र म्हारै तो तन-बदन में झाळा-पूळा लागग्या। हूं तो मिंदर गयै बिनां ही पूठी घर आयगी। आखो दिन अर रात घणां ओखा नीसरयाहै। ओळमो देंवती बोली, 'अर थे तगादै जा'र बठैईज जा बैठ्या।'
माणक उण नैं हिंवळास देंवता थकां कैयो कै उगाई री रकम आंवती सी आवै। सात दिनां में बीस हजार रै लगैटगै रिपिया वसूल'र लायो हूं - म्हारो जीवड़ो ईज जाणै है। खैर छोड इण उगाई-पताई री बांता नैं। म्हारी अेक बात सुण। पाड़ोसण जे थानै। बांझड़ी कैयी तो कांई कूड़ बोली? बांझड़ा तो टाबर नीं हुवणै सूं आपां हां ईज। इण में रिसाणां हुवणै री कांई बात?
'पण म्हां सूं नित रोज रा अै बोल - अै अमीणां कीकर सुण्यां-सैया जावै ? इण जीवणै सूं तो मरणो ईज चोखो। दिन-राता काया बळै- मौसा सुणतां-सुणतां डील पर चामड़ी को आवैनीं। खाणो चोखो लागै न-कीं पैरणो। घर मांय आखी बातां रा ठाठ है - किण बात री कोई कमी नीं। पण दिन रात ओ सोच खायां जावै कै आपणै पछै इण रो धणी कुण?'
माणको उणरी बातां नैं घणै ध्यान सूंं सुणै हो - उणां रो पड़ूत्तर तो बो भी नीं दे सकै, पण फेरूं भी बो उणनैं समझावंता थकां कैयो कै टाबर हुवणा अर ना हुवणां अै मिनख रै बूतै री बात नीं - आ निरजोरी बात है। अै तो विधाता रा लेख है। लिख दिया सो तिल घटै न राई बधै। फेरूं भी जतन करणो मिनख रो फरज है। उण रो फळ भगवान रै हाथ है। आपां नैं तो ओलाद हुवण सारू जित्त जतन जाबता करणा हा, कर-कर'र आखता हुयग्या। आपां दोनूं जणां डाक्टरां सूं आप री जांच पड़ताळ करायली - दवायां-ओखदां जितरी बे बताई खा धाप्या। सारा तीरथ, बरत-बड़कूलिया, मिंदर-देवरा कर लिया। डोरा-जंतर-मंतर, जादू-टूणां-टोटका करायै बिनां को रैया नीं। बूझा-आखा जियां ओझा, स्याणा, पंडत, पुजारी, पीर-पैगम्बर बताया करतां-करतां टापरो थोथो कर दियो, पण मनड़ै री वांछा तो को पूरीजी नीं।
सुण'र सिसकारो नाखती रतनीं रुआंसी हुय'र बोली- जे बेटा न सही अेक टींगरी ईज हुय जावती तो बांझड़ी नांव तो मिट जांवतो। अेक'र जे मर्योड़ो टींगर भी कूख फाड़'र आ पड़तो तो म्हारो बांझपणो को गिणीजतो नीं। छोरी हुवो चाहे छोरा। घर आंगण में गुडाळियां चालता किस्याक फूटरा लागै? मां-मां कैय'र जद गळै में आपरा नान्हां-नान्हां, कूळां-कूळां हाथां सूं बांथ घालै तो लुगाई रो जमारो सुफळ हुय जावै। मायड़पणो गरबीजै। मां री जिनगाणी धिन-धिन गिणीजै। मातृत्व मंे ईज नारीत्व रो सफळता है। पण, आपां! तो इण दुनियां में आय'र ओ अणमोलो सुख को भुगत्यो नीं। मां-मां रा बोल सुणणै री लालसा ईज मनमें रैयगी। जिण लुगाई री कूख नीं फाटी- जिण रै हांचळा में दूध नीं पांगर्यो-उण लुगाई रो जीवणो-कांई जीवणो है? उण नैं तो धिरकार ई धिरकार है। कैयर बा गळगळी हुंवती धणी रै बाथ घालली।
माणक उण नैं बुचकारतां थकां उण रो ध्यान छेड़ै करतो ओळमै रै सुरां में बोल्यो कै इयां रोवणो ई चालू राखसी का म्हनैं चाय-पाणी रो भी बूझसी? आखी रात गाड़ी में ऊभो-ऊभो आखतो हुयोड़ो आयो हूं। गाड़ी में बैठण नैं कठै दो आंगळ ठोड़ भी को मिली नीं।
अणमणी सी रतनी हड़बड़ा'र चटकै सी उठी अर आप री भूल जतांवती सी बोली - थे सिनान-संपाड़ा करो। हूं अबार चाय-नास्तो त्यार करू हूं। आ कैय'र बा रसोई में बड़गी। माणको उण री पीठ पर निजरां नाखतो मन में सोच्यो कै बापड़ी कितरी दुखी अर बेबस लुगाई हैं। बो न्हाणघर में नळकै हेठै बैठ्यो तो भी रतनी रा करुणा-दया अर बेबसी रा बोल बिसर नीं सक्यो। कांई करै रतनी। मां बणणै री लालसा किण लुगाई री कोनी? हर लुगाई मां बणणी चावै- आपरी कुख उजाळणी चावै। हर लुगाई रा बेटा-पोतां नैं लाड लडावणो-रमावणो-खिलावणो चावै। सै कोई आपरै घरां में हंसता-मुळकता, किलकारी मारता-राफड़ता-झगड़ता टाबर देखणां चावै। ओ इण दुनियां रो ढंग है। जिण जोड़ा री जिनगानी में अै सुख नहीं आवै, बे निरभागा है।
म्हारै ब्याव नैं पूरा बा'रा बरस बीतग्या। म्हारा मायत पोता-पोता करता सुरग सिधारग्या। बे इण सुख नैं तरसता-तरसता ई चल्या गया। म्हारी ओस्था भी अब पैंतीस रै अड़ै़गड़ै है। अब जे टाबर नीं तो भळै कद? दोगाचिन्ती में उळझेड़ो माणक न्हाणघर सूं बारै आय'र कपड़ा-लत्त पैर्या अर पूजा पाठ कर'र रतनी साथै बंतळ करतो चाय-नास्तो करै।
बो उणनैं हिंवळास देंवता थकां बोल्यो कै रतनी, टाबर हुवणै सारू जितरा जतन-जाबता करणा हा- आपां सै कर धाप्या। अब और कोई बीजा उपाय है तो बता। पीसा लगावणां-भागा-दौड़ी करणी आपणैं बस री बात है। है कोई थारै मगज में नुवों उपाय ? रतनी अेक'र धणी कानी बेबस अर हारी निजरां सूं देख्यो। कीं कैवणो चावै ही, पण बात कंठासूं होठां पर आय'र ठमगी। होठ धूजै लाग्या। बा आंगणो कुचरै लागी।
माणक उण री हिम्मत बधावंतो बोल्यो- जो तूं कैवणो चावै- बे खटकै-निरभै हुय'र कैय। आपणै बंस री बेलड़ी बधावणै सारू जितरा भी जतन हुयसी आपां करांला। है कोई उपाय?
रतनी पगां रै अंगूठां सूं जमीं कुचरती-हेठी आंख्यां कर्यां बोली - हां, है।
कांई हैं? - उतावळो सो हुय'र उणरै मूंडै कानी जोवतो माणको बूझ्यो।
थूक गिटती-होठां पर जीभ फेरती रतनी बोली- उपाय तो सांगोपांग है, पण थारै जंचै जद नीं।
कांई कानी जचै म्हारै? म्हां पर इत्तो अविश्वास कीकर? म्हां पर कांईं भरोसो कोनी?
भरोसो तो घणो ईज है।
भळै?
बात इसी है कै थे कर नहीं सको।
कांईं नहीं कर सकूं। तूं कैवै तो आसमान रा तारा तोड़'र थारै पगां में लाय पटकूं।
पक्काई?
इण में कांई मीन-मेख है।
तो द्यो वाचा। बात नै जरू करती बा बोली।
माणक उणरी हथेळी पर आप रै हाथ नैं जोर सूं पटकतो कैयो- अै वाचा। मरद री जबान कांईं फुरै है?
हां, फुरै है- भळै कैय देवोला कै मरद री जबान अर कुवै रा भूण फुरणै रा ईज हुवै है। हूं बो मरद कोनी।
तो होई बात पक्की?
सो'ळा आनां। तूं इतरा कोल-बचन करा'र बात नैं घुमावै कीकर? गुड़ लपेट्योड़ी सी बात कीकर करै? सीधी बरणाट करती आवण दै। आपणी दो काया-अेक पिराण, फेरूं दुराव-छिपााव क्यूं?
रतनी होठां पर जीभ फेरती बोली कै टाबर तो आपणै नोंवैं महीनै ईज हो सकै पण...।
पण कांई?
प...प..., आपांनैं किणी टाबर री देवी नैं बळि चढ़ावणी पड़ैला।
टाबर री बळि? आंख्यां काढ़तो माणको बूझ्यो कुण कैवै है?
डर्योड़ी सी कीं भेळी-भेळी हुवंती रतनी बोली कै अेक तांतरिक सूं म्हारी बात होई है। बो दस हजार रिपिया लेय'र जंतर-मंतर कर अेक टाबर रो भख देवी नैं दे देसी तो नौ महीनां पूरा हुंवता ईज टाबर हुय जावैला।
सुणतां ईज माणकै री आंख्यां खुली री खुली अर मुंडो बायेड़ो ईज रैयग्यो। बो धूजै लाग्यो। उणरो माथो गरणवै लाग्यो। जे ऊभो हुंवतो तो तड़ाछ खाय'र इस्यो पड़तो कै सै हाडका भांग जांवता।
रतनी रै मन री बात जिण नैं लुकावंंता-छिपावंता केई दिन हुयग्या हा। मूंडै पर आवंता ईज धणी री जो गत होई- देखतां ई बा निरढ़ाळ-निरास हुयगी। टाबर तो घणां छेड़ै रैया-ओ चुड़लै रो सिणगार ही जांवतो लखायो।
छेकड़ तीन दिनां रै रुसणा-मनावणां हुवंता-हुवंता माणको देवी नैं बळि देवण सारू हां भरली। पण, टाबर कुण है? कठै सूं मिलसी?
आ सगळी व्यवस्था बो तांतरिक कर राखी है। बो अर उण रा दो साथी दस हजार में हां भरी है। राजी हुंवता रतनी मुळकी अर धणी कानी घणै प्यार सूं देख्यो।
दो दिन पछै -अमावस-थावर री काळी-पीळी रात। गांव सूं बारै जंगळ रै अेक मिंदर में तांतरिक, उण रा दो संगळिया, पांच बरस रो अेक फूटरो-फर्रो टाबर-देवी रै अनुष्ठान में लाग रैया। धणी-लुगाई हाथ जोड़्यां सारा क्रिया-कळाप गौर सूं देखै।
छेकड़ तांतरिक रै सैन करणै पर दोनूं संगळिया उठ्या- अेक छोरै री गरदन झाली-दूजो तरवार उठाईज ही कै रतनी तिलक-छापा लगायै टाबर पर पसरगी। रणचंडी रो रूप कर'र दकालती बोली-नाठ जावो अठै सूं नीं तो हूं रोळा-बैदा कर'र सारो गांव भेळो कर लेऊंली। स्थिति री नाजुकता अर रतनी रो विकराळ रूप देख'र तांतरिक आपरै दोनूं संगळियां साथै तेतीसा मनायग्यो।
रतनी टाबर नैं बांथां में भर'र बोली कै इस्सै फुटरै-फर्रे टाबर नैं मरवा६र उण री मां री कोख उजाड़-अर म्हारी कूख बधावणी चावूं हूं- म्हनैं सौ-सौ बार धिरकार हैं-हजार-हजार लाणत है। हूं बिना ओलाद रै जिंदगी बसर कर लेवूंली, पण किणी मां री गोद नही उजाड़ूंली। आ कैय'र बा घणै जोर सूं उण टाबर नैं कस'र छाती सूं चेप लियो अर चुम्बा लेय'र उण रा दोनूं गाल लाल कर दिया। माणको अेक पसवाड़ै ऊभो अेकर रतनी कानी देखै हो अर अेकर देवी री मूरत कानी। टाबर कानी देख-देख'र उण री आंख्यां सूं चौसारा चाल पड़्या, जिणांसूं रतनी निहाल हुयगी।

संस्मरण - घाघरै में अलार्म घड़ी

सन् १९५४ री बात है। म्हैं अनूप शहर (तहसील-भादरा) री स्कूल में मास्टर हो। स्कूल में झाड़ू-बुहारी अर पाणी रा घड़िया ल्यावण सारू अेक बामणी दादी ही। बीं रो अेक बेटो बीरूराम ग्राम पंचायत में सैकेटरी रो काम भी कर्या करतो।
स्कूल मे म्हारी अेक निजी अलार्म घड़ी ही। कई बार भादरा जावणो पड़तो तद अलार्म लगा'र सोंवतो। स्कूल रै टेम पर घंटी भी अलार्म घड़ी नैं देख'र ई बजाया करता। ठैसण जावणिया भी गाड़ी रो टेम बूझ लिया करता। बां दिनां आजकाल री दांई हर कोई रै कनैं घड़ी कोनीं Justify Fullहुया करती।
एक दिन स्कूल री छुट्टी रै दिन म्हारी अलार्म घड़ी गायब हुयगी। म्हैं स्कूल रै दोनूं-तीनूं कमरां में देखली-टाबरां नैं बूझ्यो, पण को मिली नीं। म्हारै घणी गिरगिराटी हुई। उजाड़ री समाई भी हुवणी दो'री। बीं बगत बामणी दादी स्कूल री झाड़ू-बुहारी कर'र स्कूल सूं निसरण लागी तो चाणचकै ही अलार्म री घंटी सुणीजी। म्हैं अठीनैं-बठीनैं देख्यो तो कठैई कीं को सूझ्यो नीं। म्हैं घणो ध्यान लगा'र सुण्यो अर देख्यो तो अलार्म घड़ी दादी रै घाघरै में बाजण लाग रैई है। दादी आपरै घाघरै नैं घणोई दाबै पण अलार्म बंद करणी आवै नीं। छेकड़ अलार्म री चाबी खतम हुवणै सूं घंटी भी ढबगी।
म्हनैं अचंभो हुयो अर सागै-सागै हंसी भी आवै। दादी री फोटू देखणै लायक ही। म्हैं बूझ्यो, दादी ! आ बात अयां कीकर हुई?'
दादी नीचै धूण घाल्यां बोली, 'अलमारी में घड़ी पड़ी देख'र म्हारो मन चालग्यो। राम निसरग्यो। घड़ी उठाली, पण लुकावण नैं जगां को लादी नीं, जद घाघरियै रै नाड़ै सूं अलार्म घड़ी बांध'र घाघरै में लटकाली। म्हनैं कांई ठाह इण में कांई बलाय ही, जकी अयां रोळो करसी?'
म्हैं दादी नैं हिवळांस बंधावंतो बोल्यो, 'जा थारै घरै जा। म्हैं आ बात कोई नैं को बताऊंगा नीं।'
दादी आपरै घाघरै रै नाड़ै सूं घड़ी खोल'र म्हनैं संभळायी अर गोडां पर हाथ टेक'र उठी अर होळै-होळै आपरै घर कानी रिगसगी।
अब भी जद-जद घड़ी रै अलार्म देवूं तो दादी वाळी बात अर बीं रै साथै हंसी आयै बिनां को रैवैनीं।

संस्मरण - लांग में घी

सेठ - बात जची कोनीं।
नाई - पितवाण ल्यो, चौड़ै आय ज्यासी।
सेठ - जे थारी बात कूड़ होई तो?
नाई - थांरी जूती, म्हारो सिर। सेठ नैं पक्को कर'र नेवगी आपरै धंधै लाग्यो। बात सन् १९३७-३८ री है। रतननगर में सेठ श्रीनिवासजी भींवसरिया रै बेटै रो ब्याह मंड्यो। खुद रै टाबर कानीं हा, इण सारू कडूम़्बै रै अेक टाबर नैं आप गोद लियो, जिण रो नांव मदनलाल हो। कुदरत री बात। रतननगर में बा इसी गळी है जिणमें कोई ५-६ टाबर गोद ई गोद आया। इण खातर मजाक में बा गोद-गळी बाजै लागी।
सेठां नैं ब्याह रो घणो चाव हो। ब्याह सूं महीनै-बीस दिनां पैली इज हेली में सुनार गैंणो घड़ै, दरजी कपड़ा सींवै। हलवाई मिठायां बणावै। बामण्यां बनड़ा गाव। आखै परिवार मे इज नीं, पूरै बास मोहल्लै मे इण ब्याह रो घणो कोड-चाव। हेली में सेठाणी बास-मोहल्लै री लुगायां नैं गीतेरण्यां नैं कलेवा-पाणी सूं आदरै तो बारै बैठक में सेठ आपरै मिलणियां-जुलणियां री मनवारां करै।
बां दिनां घी-तेल अर किणी चीज में मिलावट रो चरसो को चाल्यो हो नीं। सस्तीवाड़ो भी मोकळो हो। एक रुपियै रो असली घी सवा सेर रै अड़गड़ै हो। बीसां दिन गोठ-घूघरी हुवंती रैयी। रुत सरदी री ही। ठंड भी मोकळी पड़ै ही।
हेली रै दरूजै बड़तां ई जीवणै पासै भट्टी पर कड़ाई चढ़ रैयी ही। नौकर-चाकर सगळा आप-आपरै काम में लाग्योड़ा हा। इतरै में नेवगी आ'र सेठां रै कान में होळै सी कैयो कै थारो रसोइयो आपरी लांग में घी रा डळा चोर'र ले ज्यावै है। म्हैं आंख्यां देख'र आयो हूं। रसोई में पींपा मांय सूं बो डळा रा डळा घी रा आपरी धोती री लांग में दाबण लाग रैयो हो। अगम बुद्धि बाणियो। सेठ आपरै हाथ में जेळी ले'र ऊभो हुयग्यो। महाराज कान पर जनेऊ टांग्यां, हाथ में लोटो लियां, पोळी सूं निसर्या। सेठ बीं रै आडा फिर'र बोल्या,'महाराज! अेकर लोटो धरद्यो, कड़ाई भट्टी पर जाबक ठण्डी हुयगी है सो भट्टी में आंच देवो।' कै'र जेळी महाराज रै हाथ मे झलाय दीनी। महाराज आपरो लोटो मेल'र जेळी सूं दूर खड़्यो भट्टी में लकड़ी सिरकावै।
'अयां कांई करो हो महाराज ! भट्टी जाबक ठंडी हुयगी है। मोकळी आंच देवो नीं।'
महाराज दूर खड़्यो डरतो-डरतो आंच देवै। भट्टी रै सारै हुय'र आंच देवंता-देवंता ज्यूं-ज्यूं ताव लाग्यो, महाराज री धोती, पग अर जूती घी सूं भरगी। महाराज घणो ई भेळो-भेळो हुवै।
आ हालत देख'र सेठ बोल्यो,'महाराज! निबटणै री इत्ती खथावळ है तो जेळी छोड़द्यो - जावो पैल्यां निबट'र आय जावो। पैली ई कैय देंवता कै थारै इत्ती तगड़ी हाजत है।'
महाराज तो लोटो ले'र इस्यो दड़ाछंट हुयो कै आपरी जिनगानी में ई बीं गळी में को बड़्यो नीं।

संस्मरण - थप्पड़ पड़ता गया - मूंडो फिरतो गयो

सन् १९३० रै अड़गड़ै रतनगर (चूरू) में किणी दो समुदायां रै बीच फौजदारी हुयगी। केस चूरू अदालत में चाल्यो। तहसीलदार नैं थर्ड क्लास मजिस्ट्रेट रा पावर हुवंता। मुद्दई (वादी) रै पख में च्यार गवाह हा। तीन तो घणा चातरक, पण चौथा पंडित स्योबगस जी लढ़ाणियां भोळा-ढाळा बामण।
लोग बतळावण करी कै तीन गवाह तो स्याणा है, पण पंडित जाबक भोळो। मुद्दई नैं हरा देसी। अै बयान ठीक ढंग सूं नीं दैय सकैला।
खैर ! तारीख पेसी पर अदालत में जद हाकम बूझ्यो, ' मुद्दई को पीटा उस समय उसका मुंह किस दिशा में था?'
पैलो गवाह उतराध, दूजो दिखणाध अर तीजो अगूण बतायो।
अब चौथै गवाह पं. स्योबगस नैं हेलो हुयो। बै धूजता-धूजता हाकम रै सांमी पेस हुया। हाकम बोल्या, 'महाराज! सच-सच बताना।'
'हां सा, साव साच-साच कैवूंला।' हाथ जोड़'र पंडित जी बोल्या।
हाकम बूझ्यो कै 'मुद्दई को जब पीटा गया तो उसका मुंह किस दिशा मे था।'
'सा, मंूडै रो कांई ? थप्पड़ पड़ता गया अर मूंडो फिरतो गयो।'
कोरट में ऊभा लोगां रो हांसता-हांसता रो पेट दूखण लागग्यो।
तीन स्याणा-स्याणा बाजण वाळा गवाह तो न्यारी-न्यारी दिसा बता'र मामलो बिगाड़ दियो हो, पण चौथा गवाह पंडित जी आपरी गवाही सूं सगळां री गवाही सही करवा'र मामलो पार लगा दियो। जीत मुद्दई री हुई।

संस्मरण - कणां नै कणां भाग ज्यासी

सन ५९ रै मई महीनै री बात। केन्द्र सरकार रा अेक लूंठा अफसर चूरू आयोड़ा। बीं बगत रा जिला कलक्टर बांनैं ले'र गांव लधासर (चूरू) पूग्या। अल्प बचत अधिकारी रै रूप में म्हैं भी बां रै साथै ई हो। सरपंच गांव रा अेक चौधरी हा। बै गांव री स्कूल में टाबरां री प्याऊ सारू सरकणां रो छपपर बांधण लाग रैया हा। कलेक्टर सा'ब बां रो परिचय अफसर नैं करा दियो।
घणी तपती तावड़ी में अेक सरपंच नैं इण भांत काम करतां देख'र बै घणा राजी हुया। बोल्या, 'गांव-गांव में इण भांत रा कार्यकर्तावां री घणी दरकार है।' भळै गांव रै गुवाड़ में गांव रा आखा लोगां री भी मीटिंग में बै भासण दियो। बोल्या, 'आप लोग लड़का नैं भणाओ हो, आ घणी , खुसी री बात है। अब आप लड़कियां नैं भी भणाओ।'
सभा में अेक आड़ू सो मिनख ऊभो होय'र बोल्यो, 'सा'ब! लड़कियां नैं भणावणी चोखी कोनीं।'
'क्यूं कांई बात है?' अफसर बूझ्यो।
बो मिनख पड़ूत्तर दियो, 'सा'ब! भण्योड़ी लड़कियां घर सूं भाग ज्यावै।'
अफसर बोल्या, 'इसी बात नीं है। देखो ! आपरै कलक्टर सा'ब री घरवाळी भण्योड़ी है, बै तो कदै ई नीं भाग्या।'
'अब तांई नीं भाग्या तो कांई हैं, कणां नैं कणां भाग ज्यासी।' बो मिनख बोल्यो।
आ बात सुणतां ई लोगड़ा मूंडै आगी गमछा कर कर'र घणा हंस्या। अेक जणो बीं रो बूकियो झाल'र बिठा लियो। कलक्टर सा'ब मुळक'र रैयग्या।

गद्य काव्‍य - बाती अर दिवलो

बाती नैं घणै सनेव सूं आपरै हिवड़ै सूं लगावंतो दिवलो बोल्यो, ''देख म्हारी मूमल! हूं थारो कित्तो लाड राखूं?''
''जदी तो हूं थारै खातर तिल-तिल बळ रैयी हूं म्हारा बादीला छेल।'' मुळक'र बाती पड़ूत्तर दीन्यो।

गद्य काव्य - बादळ'र बीजळी

असाढ़ रै मीनैं घणै लामै बिजोगां सूं बादळ अर बिजळी रो संजोग होयो। दोन्या रै मन में लाडू फूटै।
बिजळी परळाटा मारै, मेघो हुंकार करै। दोनूं दु:ख-सुख री बतळावण करै।
बिजळी मुळक'र बोली- ''अतरै दिनां में मनै कदे याद भी करी?''
''पण, बावळी! हूं तनै भूल्यो-ई कद हो?'' कैय'र बादळ उणनैं कस'र हिवळड़ै सूं लगा लीनी।

गद्य काव्‍य - हूं सौळा सिणगार करया

हूं सौळा सिणगार करया
नूंवा अटाण गाभा पेरया
टूटी-भांगी झूंपड़ी नै सुंवारी ही
झाड़-बुहार'र गेलो सुथरो करयो हो,
पण, थे को आया नीं।
घणै कोड सूं फुलड़ा बिछाया हा
फूटरी-फर्री माळा भी गूंथी ही,
सामनैं दिवलो भी जगायो हो,
मनड़ै रै दिवलै में नेह रो तेल भी घाल्यो हो,
पूजा री सामगरियां भी सजाई ही
झूंपड़ी री किंवाड़ी भी खोल दी ही
घणै हरख अर चाव सूं उडीकण लागी ही
पण, मदछकिया! थे को आयानींघणीं ई उडीकी बार-बार बारै झांक्यो
सांस ठाम'र थारै पगां रा खुड़का सुणै सारू कान मांड्या
पून रै चालणै सूं पत्तां रै हालणै सूं
थारै आवण रो बैम हुयो
पण, बादीला! थे को आयानीं
आखी रात-उडीकतां भाख फाटगी
आस निरास हुयगी
फूल अळसाईजग्या, नेह रो तेल खूटग्यो
पूजा री सामगरियां बासी हुयग्यी
हिवड़ै रो दिवळो बूझग्यो
पण, भंवर थे को आया नीं
आज भी रै-रै'र हाबका आवै
टीस उठै, कसक बधै
नखराळा! थे कै'र भी, बीं दिन क्यूं नहीं आया।

गद्य काव्‍य - पण तूं कठै?

पण तूं कठै?
कद आवेलो? आस री उमंग अळसायगी
मनड़ै रो मोद मोळो पड़ग्यो
तेरी उडीक में -
सरदी सिरकगी - पाळो ढळग्यो
डांफर बीतगी - रुत बदळगी
बोदा पान झड़ग्या - नूंवीं कूंपळ किरगी
गिरमी रा भंभूळिया उठ्या
लूंबा रा लपका चाल्या
सुपनां री सेज में गरद चढ़गी
मन रो मिरगलो घणो भटक्यो
पण तूं कठै ?
आभो गरणावै, बादळ झाला देवे
बीजळ परळाटा सूं सैन करै
बिरखा री झड़ी लागगी
अब नई आवसी तो भले कद?
होळी पाछलो धाबळो.....
आगै कांई कैवूं ?

साक्षात्‍कार

समै सारू लिखेड़ो ही समाज खातर प्रेरक बणै : पंवार


राजस्थानी साहित्य इतिहास मांय कहाणी पेटै पांवडा भरां तो बैजनाथ पंवार रो नांव आपरै सोनल रूप मांय निगै आवै। बैजनाथ पंवार उण बगत राजस्थानी कहाणियां रो सिरजण कर्यो जिण बगत राजस्थानी मांय गिणती रा कहाणीकार हा। पंवार अजै ही लगैटगै ८२ बरस री उमर मांय सक्रिय हैं।
उणां री कहाणियां री पोथी 'नैणां खूट्यो नीर' ,'लाडेसर' अर 'ओळखाण' घणी चरचा मांय रैयी। घणा पुरस्कारां सूं सनमानित पंवार नैं हाल ही 'श्रीसरस्वती सेवा पुरस्कार' मिल्यो है। पेश है उणां सूं ईं मौकै कर्योड़ी युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री बंतळ -

सहारण - आपनैं 'श्रीसरस्वती सेवा साहित्य पुरस्कार' सादर अरपण कर्यो गयो है। मोकळी-मोकळी बधाई।
पंवार - म्हारो सनमान नीं मायड़ भासा रो सनमान है। म्हैं तो अेक निमित हूं। म्हैं म्हारो बड़भाग मानूं धन्यवाद।
सहारण- इण सनमान रै मोकै सूं जबरो मोकौ ओर के हो सकै है कै राजस्थानी साहित्य अर उण मांय आपरै योगदान पेटै कीं बंतळ करल्यां।
पंवार - आच्छी बात है। आपां अेक कानी अेकला बैठ' बातां करस्यां तो सुवाद आस्यी।
( अेक अेकांत री जिगा बैठ्यां पछै। )
सहारण- म्हैं सगळा सूं पैली जाणणो चावूं कै आप उण दौर मांय लेखन सरू कर्यो जद राजस्थानी लिखारा गिणती रा हा...
पंवार- (बिचाळै ही) म्हैं सैंग सूं पैल्यां आपनैं म्हारै साहित्यिक रुझान बाबत बता देवूं , जिण सूं आपनैं अंदाजो होजास्यी अर आप म्हारै सरूवाती दौर री विगत सारू कई सवाल करण सूं बच जास्यो।
सहारण- पछै बात पैली रचना सूं सरू करो।
पंवार- ठीक है। म्हैं रतनगर (हाल जिला-चूरू,राजस्थान) मांय जल्म्यो-जायो। सन १९३७ मांय जद म्हैं पांचवीं क्लास रो पढ़ेसरी हो तद हस्तलिखित पत्रिका मांय 'वर्षा ऋतु' नांव रो अेक लेख छप्यो हो , बा म्हारी पैली रचना ही। उण पाछै लिखणै रो चाव इस्यो चढ्यो कै ना बूझो थे बात।
पढ़ाई पछै रुजगार रै पाण सरदारशहर मांय लाइब्रेरियन बणणो तो म्हारै खातर बहोत चोखो हुयो। घणो साहित्य बठै पढ्यो। बो फायदो म्हनैं अजै ताणी है।
उण दिनां रावत सारस्वत 'मरुवाणी' काढ्ता। उण मांय म्हारी कहाणी 'कातिक महातम' छपी। किशोर कल्पनाकांत रै 'ओळमो' मांय कहाणी 'लाडेसर' ही छपी। दोनूं कहाणी खासी चरचा मांय रैयी।
सहारण- उण बगत राजस्थानी मांय कुण-कुण कहाणीकार सिरैनांव हा ?
पंवार - मुरलीधर व्यास अर नानूराम संस्कर्ता खासा चरचा मांय हा। नृसिंह राजपुरोहित अर अन्नाराम सुदामा ही आपरी लेखणी री धार चमकावै हा।
सहारण- पछै आप किणनैं आपरो आदर्श मानो ?
पंवार- म्हैं सदा ही प्रेमचंद रो मुरीद रैयो हूं। राजस्थानी मांय अन्नाराम सुदामा रो नांव म्हारै चित चढ्योड़ो है।
सहारण- ओर कुण-कुण थानैं कथा मांय चोखा लागै ?
पंवार-विजयदान देथा, श्रीलाल नथमल जोशी, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, डॉ. मनोहर शर्मा, मूलचंद प्राणेश, लक्ष्मीकुमारी चूंडावत आद घणा ही नांव इस्सा है जका री रचनावां पाठकां नैं अेक नुंवै बोध सूं जाणोजाण करै।
सहारण- राजस्थानी कहाणियां आपरै देखतां-देखतां अेक लाम्बो सफर तय कर लियो। आपनैं बी बगत री कहाणी अर आज री कहाणी मांय के फरक लागै?
पंवार - म्हनैं बात कैवंता गरब हुवै कै राजस्थानी कहाणी बडी उतावळ सूं आगै बढ़ी है। दूजी भाषावां री तुलना मांय निरखां तो राजस्थानी कहाणी संसार आपरै जबरै रूप मांय दिखै। सरूआती दौर मांय कहाणी मांय कथ्य प्रधान हो जियां म्हारी सरूआती कहाणियां मांय आप देख सको हो , जद कै आज री कहाणियां मांय शिल्प री प्रधानता आगी।
सहारण- आप इण बदळाव नैं किंया देखो ?
पंवार- चोखी बात है। म्है मानूं कै बगत अर परिस्थितियां सारू सरूप बदळै। कहाणी रो सरूप ही बदळणो स्वाभाविक हो। समै सारू लिखेड़ो ही समाज खातर प्रेरक बणै। कथ्य, परिवेश अर परिस्थितियां रै अनुरूप राजस्थानी कहाणी चाली, ही तो आच्छोपण है। आज समाज मांय उपभोगवाद हावी है, इण बगत आपां पाठकां साम्हीं कोरा पुराणां आदर्श राखां तो बांनैं पाठक कदै ही स्वीकार कोनी करै। जुग अर डोळ सारू बात केवण रो असर ज्यादा हुवै। आप देखो नुंवा कहाणीकार रामेश्वरदयाल श्रीमाली, मालचंद तिवाड़ी, चेतन स्वामी, भरत ओळा, सत्यनारायण सोनी, मदन सैनी , दुर्गेश, श्रीभगवान सैनी अर आप रो नांव लियो जा सकै , उणां री कहाणियंा मांय नुंवै भावबोध अर नुंवै परिवेश नैं उठायो गयो है।
सहारण- आपरी कहाणियां मांय गांवां री समस्यावां नैं ही उठायो गयो है। जद कै शहर ही अेक ठाडी आबादी री ठोड हुवै ?
पंवार- प्राय: लेखक जिस्यो देखै, भोगै अर अनुभव करै बिस्यो ही लिखै। म्हैं जीवण संघर्ष मांय गांव-गांव भटक्यो, गांवां नैं नेड़ै सूं देख्यां। बस ही कारण है कै म्हारी कहाणियां ंमांय शहरी परिवेश कम ही मिलै।
सहारण- आपरी अेक संस्मरणां री पोथी 'जीवंता जागता चितराम' छपी ही। संस्मरण रै पेटै आप के कैवणो चावो?
पंवार- संस्मरण भोगेड़ो सांच हुवै। बस उणनैं साहित्यिक रूप दे' लिखारो पाठक नैं परोसै। 'जीवंता जागता चितराम' मांय म्हारा देखेड़ा अर भोगेड़ा सांच है। संस्मरणा बाबत घणो आप बीकानेर विश्वविद्यालय सूं म्हारै संस्मरणा ऊपरां डॉ. मदन सैनी रै निर्देशन मांय महेश कुमार राजपुरोहित रै लिख्योड़ै लघुशोध प्रबन्ध ' श्री बैजनाथ पंवार के संस्मरण : एक अध्ययन' मांय देख सको हो।
सहारण- आप 'श्रीसरस्वती सेवा पुरस्कार-२००४' जको हाल दियो गयो है, ले' किस्यो' अनुभव करो?
पंवार- म्हारो सौभाग रैयो कै पुरस्कार घणा ही मिल्या। बडा-बडा उच्छबां मांय बै अरपण कर्या गया। पण पुरस्कार समारोह म्हारै खातर न्यारो-निरवाळो है। पैली बात तो कै इण समारोह मांय राजनेतावां री हाजरी कोनी ही , फगत साहित्यकारां रो आतिथ्य हो दूजी बात कै सगळो समारोह प्रायोजक नरेन्द्र कुमार धानुका री अपणायत सूं भर्योड़ो हो बै दिल खोल' सनमान कर्यो। बिना औपचारिकता अर सनमानित हुवण वाळां रै लाडाकोडा सूं कार्यक्रम हुयो। कार्यक्रम प्रायोजकां रै दिल सूं जुडे़़डो हो, बहोत आच्छो लाग्यो पुरस्कार ले'र।
सहारण- आप अबार लेखन मांय कांई कर रैया हो ?
पंवार- अवस्था ही घणी होगी , कीं आंखां री ही पीड़ है। के लिख सकां हां , लिख लियो लिखणो हो जितो। संस्मरणा री दूजी पड़त ही अधखली पड़ी है। बस अब तो अेक इच्छा बाकी रैय री है
सहारण- बा के ?
पंवार- राजस्थानी नैं मानता। जे राजस्थानी री मानता देखल्यां तो सातूं न्हाण होज्या। आप नूंवा लोग कमाण संभाळो , म्हारी आसीस आपरै साथै है।
म्हे कार्यक्रम स्थल सूं बहीर हुवण री उतावळ मांय घणी बातां नैं बिचाळै छोड' उठ खड़्या हुया।

फोटुवां रै उणियारै : बैजनाथ पंवार