गद्य काव्‍य - हूं सौळा सिणगार करया

हूं सौळा सिणगार करया
नूंवा अटाण गाभा पेरया
टूटी-भांगी झूंपड़ी नै सुंवारी ही
झाड़-बुहार'र गेलो सुथरो करयो हो,
पण, थे को आया नीं।
घणै कोड सूं फुलड़ा बिछाया हा
फूटरी-फर्री माळा भी गूंथी ही,
सामनैं दिवलो भी जगायो हो,
मनड़ै रै दिवलै में नेह रो तेल भी घाल्यो हो,
पूजा री सामगरियां भी सजाई ही
झूंपड़ी री किंवाड़ी भी खोल दी ही
घणै हरख अर चाव सूं उडीकण लागी ही
पण, मदछकिया! थे को आयानींघणीं ई उडीकी बार-बार बारै झांक्यो
सांस ठाम'र थारै पगां रा खुड़का सुणै सारू कान मांड्या
पून रै चालणै सूं पत्तां रै हालणै सूं
थारै आवण रो बैम हुयो
पण, बादीला! थे को आयानीं
आखी रात-उडीकतां भाख फाटगी
आस निरास हुयगी
फूल अळसाईजग्या, नेह रो तेल खूटग्यो
पूजा री सामगरियां बासी हुयग्यी
हिवड़ै रो दिवळो बूझग्यो
पण, भंवर थे को आया नीं
आज भी रै-रै'र हाबका आवै
टीस उठै, कसक बधै
नखराळा! थे कै'र भी, बीं दिन क्यूं नहीं आया।