गद्य काव्य - बादळ'र बीजळी

असाढ़ रै मीनैं घणै लामै बिजोगां सूं बादळ अर बिजळी रो संजोग होयो। दोन्या रै मन में लाडू फूटै।
बिजळी परळाटा मारै, मेघो हुंकार करै। दोनूं दु:ख-सुख री बतळावण करै।
बिजळी मुळक'र बोली- ''अतरै दिनां में मनै कदे याद भी करी?''
''पण, बावळी! हूं तनै भूल्यो-ई कद हो?'' कैय'र बादळ उणनैं कस'र हिवळड़ै सूं लगा लीनी।